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09-03-2025 Vol 19

परिसीमन का फॉर्मूला बनाना बड़ी चुनौती

Delimitation Formula : तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार और भाजपा से लड़ने के लिए हिंदी और परिसीमन को माध्यम बनाया है। अभी परिसीमन को लेकर कोई पहल नहीं हुई है।

लेकिन एमके स्टालिन इस मसले पर पांच मार्च को सर्वदलीय बैठक कर रहे हैं। उनके साथ साथ दक्षिण भारत के बाकी मुख्यमंत्रियों ने भी इस पर चिंता जताई है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने परिसीमन को लेकर चिंता जताई और कहा कि वे अपना राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं घटने देंगे।

हालांकि अभी यह तय नहीं है कि परिसीमन कब होगा। फिर भी दक्षिण भारत के राज्यों के लिए यह बड़ी चिंता का विषय है। (Delimitation Formula)

उनको लग रहा है कि अगर आबादी के अनुपात में लोकसभा की सीटों की संख्या तय होती है तो उत्तर भारत के बड़ी आबादी वाले राज्यों का वर्चस्व और मजबूत होगा, जबकि जनसंख्या नियंत्रण करके आर्थिक विकास को गति देने वाले दक्षिण राज्यों की राजनीतिक स्थिति और कमजोर होगी।

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परिसीमन को 2026 तक के लिए टाल दिया (Delimitation Formula)

यह चिंता कितनी वास्तविक है उस पर विचार से पहले मौजूदा संवैधानिक स्थिति को समझने की जरुरत है। भारत में 1973 में लोकसभा सीटों की संख्या 545 की गई थी। इसमें से 543 सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं और दो सदस्यों को एंग्लो इंडियन समुदाय से मनोनीत करने की व्यवस्था की गई।

1976 में इंदिरा गांधी ने सीटों की संख्या बढ़ाने पर 25 साल के लिए रोक लगा दी थी। 2001 में जब यह अवधि समाप्त हुई तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। उसने परिसीमन आयोग का गठन तो किया लेकिन परिसीमन नहीं किया।

वाजपेयी सरकार ने संविधान के 84वें संशोधन के जरिए परिसीमन को 25 साल के लिए यानी 2026 तक के लिए टाल दिया। (Delimitation Formula)

संविधान के 84वें संशोधन में कहा गया है कि 2026 तक लोकसभा की सीटें बढ़ाने पर रोक रहेगी। लेकिन ऐसा नहीं है कि उसी साल परिसीमन करा कर सीटें बढ़ाई जा सकेंगी। क्योंकि इस संशोधन के मुताबिक 2026 के बाद होने वाली पहली जनगणना के आधार पर ही परिसीमन होगा।

कोराना की वजह से 2021 में जनगणना नहीं

इसका मतलब है कि अगर सब कुछ ठीक रहता तो 2031 में होने वाली जनगणना के बाद ही परिसीमन होता। लेकिन कोराना महामारी की वजह से 2021 में जनगणना नहीं हुई। पहली बार ऐसा हुआ कि देश में 10 साल पर होने वाली जनगणना नहीं हुई। (Delimitation Formula)

कोरोना महामारी खत्म हुए भी कई साल हो गए। यह भी दिलचस्प है कि कोरोना की वजह से कोई चुनाव नहीं टला। लोगों की मौतें हो रही थीं और साथ साथ चुनाव भी चल रहे थे।

लेकिन जनगणना रूक गई तो रूक गई! अब ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार ने आपदा को अवसर बना लिया है। उसने अभी तक जनगणना की अधिसूचना जारी नहीं की है। (Delimitation Formula)

तभी यह संभवाना जताई जा रही है कि सरकार अगले साल तक जनगणना नहीं कराए। 2026 के बाद ही जनगणना हो और उसके आधार पर परिसीमन कर दिया जाए। ऐसा होता है तो सरकार को अलग से संविधान संशोधन करने की जरुरत नहीं होगी। 84वें संशोधन के हिसाब से यह काम हो जाएगा।

परिसीमन का फॉर्मूला तय करना बड़ा सिरदर्द

बहरहाल, जब भी परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी तो उसका फॉर्मूला तय करना बड़ा सिरदर्द होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाने की जरुरत है। जिस समय सीटों की संख्या 545 तय की गई थी उस समय से अभी भारत की आबादी लगभग तीन गुनी हो गई है।

1971 की जनगणना के हिसाब से भारत की आबादी 54 करोड़ थी, जो आज डेढ़ सौ करोड़ के करीब है। ऐसे में आबादी और जन प्रतिनिधियों का अनुपात असंतुलित हुआ है। इसको ठीक करने और तर्कसंगत बनाने की जरुरत है। (Delimitation Formula)

देश में अनेक लोकसभा क्षेत्र हैं, जिनमें 30 लाख से ज्यादा आबादी है। एक सांसद के लिए इतनी बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करना असंभव की हद तक मुश्किल है।

सो, सिद्धांत रूप से इस पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है कि सांसदों की संख्या बढ़नी चाहिए। यह बात भारत सरकार ने संसद भवन की नई इमारत की जरुरत सिद्ध करने के समय भी अदालत में कही थी। (Delimitation Formula)

तभी नई इमारत में लोकसभा में 880 सांसदों के बैठने की व्यवस्था बनाई गई है। राज्यसभा में भी 245 की जगह 384 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था बनाई गई है।

UP में सीटों की संख्या 80 से 120 (Delimitation Formula) 

अब सवाल है कि क्या लोकसभा सीटों की संख्या में बढ़ोतरी के लिए आबादी को आधार बनाया जा सकता है? अगर ऐसा होता है तो दक्षिण के राज्यों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।

अगर 20 लाख की आबादी पर एक लोकसभा सीट का फॉर्मूला बनाया जाता है तो कुल सीटों की संख्या नौ सौ पहुंच जाएगी और अकेले उत्तर प्रदेश में सीटों की संख्या 80 से बढ़ कर 120 हो जाएंगी।

इस फॉर्मूले से जो सीटें बढ़ेंगी उनमें से 80 फीसदी सीटें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बढ़ेंगी। ये ही राज्य हैं, जहां अब भी जनसंख्या वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर है या वृद्धि दर रिप्लेसमेंट रेट से ज्यादा है।

अगर हिंदी पट्टी के राज्यों में सीटें बढ़ती हैं तो इससे दक्षिणी राज्यों का राष्ट्रीय राजनीति में प्रतिनिधित्व व वर्चस्व दोनों बहुत कम होगा। दूसरे, हिंदी पट्टी से ही भाजपा की 80 फीसदी सीटें मिलती हैं। (Delimitation Formula)

दक्षिण भारत के राज्यों द्वारा परिसीमन का विरोध करने के पीछे ये दोनों तर्क हैं। चूंकि दक्षिण के सभी राज्यों में अभी गैर भाजपा दलों की सरकार है इसलिए उन्होंने इसके जोर शोर से उठाया है। उनका कहना है कि आबादी नियंत्रित करने के लिए उनको सजा दी जा रही है।

वित्तीय मामले में पहले ही वे नाराजगी जाहिर कर चुके हैं क्योंकि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के समय से ही केंद्रीय बजट के आवंटन में उनका हिस्सा घटता जा रहा है और बांटने योग्य करों में भी उनका हिस्सा कम हो रहा है। (Delimitation Formula)

उनकी बजाय ज्यादा पैसा बड़ी आबादी वाले और गरीब राज्यों को जा रहा है। इसलिए दक्षिणी राज्यों की नाराजगी को भाषा, संस्कृति, संसद में प्रतिनिधित्व और वित्तीय विवाद के नजरिए से देखने की जरुरत है।

उत्तर भारत के राज्यों की सीटें नहीं बढ़ेंगी (Delimitation Formula)

वैसे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दक्षिणी राज्यों को भरोसा दिलाया कि उनकी सीटें कम नहीं होंगी। लेकिन यह भरोसा बहुत कारगर इसलिए नहीं दिख रहा है क्योंकि उन्होंने यह नहीं कहा कि उत्तर भारत के राज्यों की सीटें नहीं बढ़ेंगी।

अगर दक्षिणी राज्यों की सीटें नहीं घटती हैं परंतु उत्तर भारत के राज्यों की सीटों में इजाफा हो जाता है तब भी प्रतिनिधित्व का अनुपात असंतुलित हो जाएगा। इसको संतुलित और तर्कसंगत बनाना पहली जरुरत है।

इसका रास्ता यह है कि सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए सिर्फ आबादी को आधार नहीं बनाना चाहिए। राज्यों के भौगोलिक क्षेत्रफल और आर्थिक स्थिति को भी इसमें शामिल करना चाहिए।

संतुलन के लिए एमके स्टालिन या चंद्रबाबू नायडू जल्दी जल्दी जनसंख्या बढ़ाने की जो अपील कर रहे हैं वह निश्चित रूप से सही रास्ता नहीं है। (Delimitation Formula)

जनसंख्या बढ़ा कर लोकसभा की सीटें बचाने के बारे में सोचना भी उचित नहीं होगा। हां, दक्षिण भारत के राज्यों को राजनीतिक तरीके से अपनी बात रखनी चाहिए और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में असंतुलन को कम से कम रखने के उपायों पर केंद्र सरकार से चर्चा करनी चाहिए।

अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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