Wednesday

23-04-2025 Vol 19

‘एक देश, एक चुनाव’ का बिल आएगा!

नई दिल्ली। संसद के शीतकालीन सत्र में ही केंद्र सरकार ‘one nation one election’ का विधेयक पेश कर सकती है। शीतकालीन सत्र में पक्ष और विपक्ष के बीच चल रहे गतिरोध के बीच सरकार यह अहम बिल लाना चाह रही है। गौरतलब है कि इस सत्र में लगातार गतिरोध बना हुआ है और विपक्षी पार्टियां अडानी के मसले पर चर्चा की मांग कर रही हैं और सदन के अंदर व बाहर प्रदर्शन कर रही हैं। फिर भी जानकार सूत्रों का कहना है कि लोकसभा और सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का विधेयक इसी सत्र में आ सकता है।

बताया जा रहा है कि सरकार चाहती है कि यह विधेयक सभी पार्टियों की सहमति से पास हो। इसलिए सरकार विधेयक पेश करने के बाद उस पर विचार के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी का गठन कर सकती है। जेपीसी इस विधेयक पर सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा करेगी। इसके अलावा सभी राज्यों की विधानसभाओं के स्पीकर और देशभर के बुद्धिजीवियों और अन्य संबंधित पक्षों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा। साथ ही आम लोगों की भी राय ली जाएगी। हालांकि यह तमाम काम पहले भी किए जा चुके हैं। इस बिल पर विचार के लिए बनी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने भी सभी संबंधित पक्षों और आम लोगों की राय ली थी।

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गौरतलब है कि इससे पहले सितंबर में केंद्रीय कैबिनेट ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। सितंबर में इसे स्वीकार किए जाने के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था- पहले फेज में विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ होंगे। इसके बाद एक सौ दिन के भीतर दूसरे फेज में निकाय चुनाव साथ कराए जाएं। उससे पहले ‘एक देश, एक चुनाव’ पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में दो सितंबर 2023 को एक पैनल बनाया गया था। इस पैनल ने सभी संबंधित पक्षों और विशेषज्ञों से चर्चा और 191 दिन की रिसर्च के बाद 14 मार्च 2924 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

रामनाथ कोविंद कमेटी की रिपोर्ट में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की गई है। इसमें यह सुझाव भी दिया गया है कि कैसे सारे चुनाव एक साथ हो सकते हैं। इसके मुताबिक 2029 में सारे चुनाव एक साथ होंगे और उससे पहले होने वाले सभी विधानसभाओं के चुनाव दो चरणों में कराए जाएंगे। इनमें से कई विधानसभाओं का कार्यकाल घटाया जाएगा। हालांकि ज्यादातर विपक्षी पार्टियों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है। विपक्ष ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। इस बिल को पास कराने के लिए संविधान के अनेक प्रावधानों में बदलाव करना होगा।

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