नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने बताया है कि भारत के बैंकों ने पिछले 10 साल में करीब 16.35 लाख करोड़ रुपए का कर्ज बट्टे खाते में डाला है। बैंकों ने इनको गैर निष्पादित संपत्ति यानी एनपीए माना और इनको बट्टे खाते में डाल दिया। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान सबसे अधिक 2,36,265 करोड़ रुपए के एनपीए बट्टे खाते में डाले गए। वहीं 2014-15 में 58,786 करोड़ रुपए के एनपीए बट्टे खाते में डाले गए थे। यह पिछले 10 सालों में सबसे कम है।
वित्त मंत्री ने लोकसभा में बताया कि वर्ष 2023-24 के दौरान बैंकों ने 1,70,270 करोड़ रुपए के नहीं चुकाए गए कर्जों को बट्टे खाते में डाल दिया। यह इसके पिछले वित्त वर्ष यानी 2022-23 के 2,16,324 करोड़ रुपए से कम है। उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक के दिशा निर्देशों और बैंकों के बोर्ड की ओर से अनुमोदित नीति के मुताबिक बैंक एनपीए को बट्टे खाते में डाल देते हैं। इनमें वे एनपीए भी शामिल हैं, जिनके चार वर्ष पूरे होने पर ऐसा प्रावधान किया गया है।
निर्मला सीतारमण ने कहा कि इस तरह बट्टे खाते में डालने से कर्जधारकों की देनदारियों में छूट नहीं मिलती और इसलिए इससे कर्जधारक को कोई लाभ नहीं होता। उन्होंने कहा कि बैंक अपने पास उपलब्ध विभिन्न वसूली तंत्रों के तहत उधारकर्ताओं के खिलाफ शुरू की गई वसूली कार्रवाइयों को जारी रखते हैं, जैसे कि दीवानी अदालतों या कर्ज वसूली अधिकरणों में मुकदमा दायर करना, संपत्तियों की नीलामी आदि शामिल हैं।