Thursday

24-04-2025 Vol 19

अब कोई परदादारी नहीं

अब सीधा खेल है। आप अगर सरकार के खिलाफ बोले, तो आपका कोई ना कोई कथित अपराध ढूंढ लिया जाएगा। फिर एजेंसियां आपके यहां दस्तक देंगी। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक को मिले सीबीआई नोटिस का यही संदेश है।

अब सीधा खेल है। आप अगर सरकार के खिलाफ बोले, तो आपका कोई ना कोई कथित अपराध ढूंढ लिया जाएगा। फिर एजेंसियां आपके यहां दस्तक देंगी। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक को मिले सीबीआई नोटिस का यही संदेश है।

नरेंद्र मोदी सरकार ने कानून, कानून लागू करने वाली एजेंसियों और जिन तक उन एजेंसियों के हाथ पहुंचते हैं, उनके बारे में हर तरह के परदे गिरा दिए हैँ। अब सीधा खेल है। आप अगर सरकार के खिलाफ बोले, तो आपका कोई ना कोई कथित अपराध ढूंढ लिया जाएगा। फिर एजेंसियां आपके यहां दस्तक देंगी। जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक को मिले सीबीआई नोटिस का यही संदेश है। मलिक ने जब खुल कर अपनी बातें कहने का मन बनाया होगा, तब संभवतः उन्हें भी इसके संभावित नतीजे का अहसास रहा होगा। कम से कम उन लोगों को अवश्य ही था, जिन्होंने हाल में उनके इंटरव्यू सुने।

बहरहाल, सरकार ने अब उन्हें निशाना बना लिया है, तो इसके संभावित नतीजों का भी अनुमान लगाया जा सकता है। मलिक को जो मुश्किलें पेश आएंगी, वह तो जग-जाहिर है। लेकिन उसके साथ ही यह भी जाहिर हो रहा है कि ऐसी कार्रवाइयां अब रही-सही साख भी खो रही हैं। जिन विपक्षी नेताओं या सिविल सोसायटी संगठन या मीडिया संस्थान पर सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई अब तनिक भर भी यह संदेह पैदा नहीं करती कि इसके पीछे सचमुच कोई वैध कारण रहा होगा। उलटे कार्रवाई का शिकार को लेकर समाज के एक बड़े हिस्से में सहानुभूति और समर्थन का भाव पैदा होता है।

सीबीआई का नोटिस मिलने की खबर आते ही सत्यपाल मलिक के लिए जिस तरह का समर्थन भाव देखा गया, वह इस बात की ठोस मिसाल है। इसके साथ ही सरकार के प्रति गुस्से की भावना भी बढ़ती नजर आ रही है। हकीकत यह है कि सरकार समर्थक समूहों के पास भी ऐसी कार्रवाइयों का समर्थन करने के तर्क कमजोर पड़ रहे हैं। तब ऐसे तर्क चूकने लगें, तो उसका सीधा मतलब होता है कि ताकत के जोर से सरकार चलाने की बढ़ी प्रवृत्ति बेनकाब होने लगी है। गौरतलब है कि ताकत मोहल्लों के दादाओं के पास भी होती है। लोग डरते उनसे भी हैं। लेकिन उनकी कोई साख नहीं होती। बल्कि उनके रुतबे को कानून की नाकामी के रूप में देखते हैं। क्या कुछ-कुछ ऐसा ही भाव सरकारी कार्रवाइयों के बारे में देखने को नहीं मिलने लगा है?

NI Editorial

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