केंद्र सरकार देश के 81.35 करोड़ लोगों को पांच किलो मुफ्त अनाज देगी तो साथ साथ उनको यह भी बताएगी कि यह अनाज उनको किसकी कृपा से मिल रहा है। ऐसा सिर्फ खबरों, भाषणों या विज्ञापनों के जरिए नहीं होगा, बल्कि लिख कर लाभार्थियों को बताया जाएगा कि उनकी भुखमरी मिटाने के लिए केंद्र सरकार उनके ऊपर कृपा कर रही है। उनको पांच किलो अनाज के साथ एक रसीद मिलेगी, जिस पर लिखा होगा कि इस पांच किलो अनाज की कितनी कीमत है और वह कीमत केंद्र सरकार चुका रही है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि केंद्रीय खाद्य आपूर्ति मंत्रालय की ओर से सभी राज्यों को चिटठी लिख कर कहा गया है कि वे यह सुनिश्चित करें कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत दिए जाने वाले पांच किलो अनाज के साथ एक रसीद दी जाए, जिस पर सब्सिडी की रकम लिखी हो और बताया जाए कि यह केंद्र की ओर से दिया गया है। ऐसा करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि कई राज्य भी मुफ्त अनाज की योजना चलाते हैं। सो, लाभार्थियों की नजर में कोई कंफ्यूजन नहीं रहना चाहिए कि कौन सी कृपा कहां से बरस रही है। केंद्र की कृपा की रसीद अलग मिले और राज्य भी चाहें तो वे अपनी कृपा की रसीद भी काट कर दे सकते हैं।
सोचें, यह किस तरह से गरीब और भुखमरी झेल रहे करोड़ों लोगों को अपमानित करने की सोच है? क्या केंद्र सरकार के पास कोई पैसे का अपना खजाना है, जिससे वह अनाज खरीद कर लोगों को दे रही है? जिस पैसे से अनाज खरीदा जा रहा है क्या वह देश के आम नागरिकों का ही पैसा नहीं है? अगर वह आम आदमी की गाढ़ी कमाई का पैसा है तो फिर उस पर केंद्र सरकार अपना नाम कैसे लिख सकती है? क्या यह अच्छा नहीं होता है कि लाभार्थियों को मिलने वाले मुफ्त अनाज के साथ एक रसीद दी जाती, जिस पर लिखा होता कि यह अनाज आप ही पैसे से खरीद कर आपको दिया जा रहा है? लेकिन इसकी बजाय सरकार उनको बताएगी कि हे भूखे नंगे लोगों देखो यह अनाज हमारी कृपा से तुमको मिल रहा है, इसे खाओ और हमारे विश्वासपात्र वोटर बने रहे!
हालांकि यह पहली बार नहीं है कि नागरिकों के टैक्स के पैसे से नागरिकों को मिलने वाली सुविधाओं का श्रेय सरकार ले रही है और उसका प्रचार कर रही है। कोरोना में मुफ्त वैक्सीन का ऐसे ही प्रचार किया गया, जबकि अमेरिका में वैक्सीन मुफ्त दी गई तो लिखा गया कि लोगों के टैक्स के पैसे से उनको निःशुल्क वैक्सीन दी जा रही है।
बहरहाल, रेलवे की टिकट पर भी लिखा होता है कि इसका कितना प्रतिशत पैसा सब्सिडी का है, जिसका भार दूसरे लोग उठाते हैं। यह भी तकनीकी रूप से गलत बात है क्योंकि दूसरे लोगों के साथ साथ वो लोग भी भार उठाते हैं, जो रेलवे की यात्रा करते हैं। परोक्ष कर यानी जीएसटी, उत्पाद शुल्क या पेट्रोल-डीजल पर लगने वाला शुल्क हर व्यक्ति समान रूप से चुकाता है। सोचें, सरकारें लोगों से ही पैसे लेकर उनका रहनुमा बन रही हैं! यह सिर्फ केंद्र सरकार का मामला नहीं है। दिल्ली की सरकार भी बिजली की सब्सिडी देती है तो उस पर लिखा होता है कि आपका वास्तविक बिल तो इतने रुपए का बना लेकिन सरकार की सब्सिडी की वजह से आपको कम बिल चुकाना होगा। यह कुछ कुछ सुपर मार्केट से की जाने वाली खरीदारी की तरह है, जिसके बिल पर लिखा होता है कि आपने अपनी खरीद पर आपने कितने रुपए बचाए। कोई दुकानदार ऐसा करे तो बात समझ में आती है लेकिन जब सरकारें ऐसा करती हैं तो लगता है कि वह न सिर्फ लोगों को मूर्ख बना रही हैं, बल्कि अपमानित भी कर रही हैं।
लोगों के ऊपर सब्सिडी के रूप में कितनी कृपा बरस रही है और किसकी कृपा बरस रही है, यह बताने की बजाय सरकारों को बताना चाहिए कि लोगों से वह कितना टैक्स वसूल रही है और उस टैक्स की कृपा पर कौन कौन पल रहा है। प्रधानमंत्री से लेकर सबसे निचले स्तर के सरकारी कर्मचारी को मिलने वाली पे स्लिप यानी वेतन की रसीद पर लिखा होना चाहिए कि उनको यह वेतन आम नागरिक के टैक्स के पैसे से दिया जा रहा है। वे जब मुफ्त हवाईजहाज की यात्रा करें तो बोर्डिंग पास पर भी लिखा जाए कि नागरिकों के टैक्स के पैसे से वे मुफ्त में उड़ान भर रहे हैं। उनको जो मुफ्त का घर, बिजली, पानी, टेलीफोन आदि की सुविधाएं मिलती हैं उन पर भी लिखा जाना चाहिए के ये सारी सुविधाएं आम लोगों के टैक्स के पैसे से दी जा रही हैं। जब किसी बड़े धनपति को मोटा कर्ज दिया जाए तो लिख कर उसको बताया जाए कि यह आम लोगों की गाढ़ी कमाई का पैसा है, जो उन्होंने बैंकों में जमा किया है और जब उनका कर्ज बट्टेखाते में डाला जाए, उनका टैक्स माफ किया जाए या उनको किसी तरह की सब्सिडी दी जाए तो उनको भी मिलने वाले कागज पर लिखा हो कि हे अरबपतियों यह पैसा देश की गरीब जनता का है।
इसके साथ ही देश की जनता को बताया जाए का किस उत्पाद या किस सेवा के बदले सरकार उनसे क्या ले रही है। पेट्रोल या डीजल खरीदने पर उसकी रसीद के ऊपर टैक्स का ब्योरा भी लिखा हो। जैसे यह बताया जाए कि सौ रुपए का पेट्रोल खरीदने पर भारत सरकार उसमें से 28 रुपया टैक्स लेती है। इस पर राज्यों का भी टैक्स लिखा होना चाहिए कि राज्य सरकार कितना टैक्स लेती है। टेलीफोन और बिजली आदि के बिल पर तो लिखा होता है कि सरकारें कितना टैक्स और कितना सरचार्ज लेती हैं लेकिन हर उत्पाद के पैकेट पर लिखा होना चाहिए कि उस पर लोग कितना जीएसटी चुका रहे हैं। अगर लोगों को यह बताया जा रहा है कि सरकार उनके ऊपर कितनी कृपा कर रही है और कितनी सब्सिडी दे रही है तो लोगों को यह भी पता होना चाहिए कि सरकार उनसे टैक्स, सेस और सरचार्ज के रूप में कितनी वसूली कर रही है। विडंबना है कि सरकार हर महीने बताती है कि उसने जीएसटी के मद में कितनी वसूली की है और नागरिकों का एक तबका इसका जश्न मनाता है कि देखिए अमुक जी की सरकार आने के बाद कितना टैक्स इकट्टा हो रहा है। उसे यह समझ ही नहीं है कि सरकार उसकी जेब से पैसा निकाल कर अपना संग्रह बढ़ा रही है। क्या पता हर उत्पाद के ऊपर दाम के साथ साथ टैक्स की रकम लिखी जाए तो लोगों को कुछ समझ में आए।