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01-04-2025 Vol 19

देवशयनी एकादशी कल,हरिद्वार में गंगा स्नान करने से मिलेगा लक्ष्मी-नारायण का आशीर्वाद


devshayani ekadashi: आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी बुधवार, 17 जुलाई को है. देवशयनी एकादशी को हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन भगवान श्रीहरि 4 माह के लिए क्षीरसागर में विश्राम के लिए चले जाते है. आषाढ़ मास की देवशयनी एकादशी से चतुर्मास भी शुरू हो जाता है. चतुर्मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. इन दिनों दान-पुण्य का अधिक महत्व रहता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी शुभ कार्य पर यदि तीर्थ स्थान पर पूजा पाठ, व्रत आदि किया जाए, तो उसका फल और अधिक बढ़ जाता है. ऐसे ही देवशयनी एकादशी पर तीर्थनगरी हरिद्वार में गंगा स्नान करने और ध्यान, भजन आदि से एकादशी का संपूर्ण फल प्राप्त होता है, साथ ही माता लक्ष्मी भी विशएष कृपा बनी रहती है.

देवशयनी एकादशी पर गांगा स्नान का महत्व

देवशयनी एकादशी पर व्रत-पूजा पाठ करने से भगवान विष्णु का विशेष फल देते है. वहीं यदि इस दिन हरिद्वार में हर की पौड़ी पर गंगा स्नान कर व्रत और मंत्रों का जाप किया जाए, तो देवशयनी एकादशी का कई गुना संपूर्ण फल प्राप्त होता है. कलयुग में मोक्षदायनी मां गंगा का सबसे अधिक महत्व होता है. यदि देवशयनी एकादशी पर तीर्थनगरी हरिद्वार में गंगा स्नान किया जाए, तो सभी दुखों और पाप से छुटकारा मिल जाता है, साथ ही भगवान विष्णु प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं. देवशयनी एकादशी पर हरिद्वार में हर की पौड़ी पर गंगा स्नान करने से सभी एकादशी का फल प्राप्त होने की धार्मिक मान्यता है. विधिपूर्वक देवशयनी एकादशी पर गंगा स्नान, पूजा पाठ, व्रत करने से जहां भगवान विष्णु प्रसन्न होकर सभी दुखों से छुटकारा दिलाते हैं. वहीं माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन की बरसात करती हैं, जिससे व्यक्ति को जीवन भर धन की कमी नहीं होती है.

 

दान-पुण्य से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है

मान्यता है कि देवशयनी एकादशी पर गंगा स्नान करने, व्रत करने और पूजा पाठ करने के बाद दान का भी बहुत बड़ा महत्व है. दान करने से कई जन्मों के पाप खत्म हो जाते हैं और श्रद्धालुओं को विष्णु लोक धाम में स्थान की प्राप्ति होती है. देवशयनी एकादशी चातुर्मास में आती है. देवशयनी एकादशी से हिंदू धर्म में सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु और सभी देव सो जाते हैं. इस दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं और व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर फल प्राप्त होता है.

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