हम सभी ने हमेशा से ही देवी मां की पूजा होते हुए तो जरूर देखा है लेकिन जब कई यह कहे कि एक ऐसा गांव जहां पर देवी मां की नहीं बल्कि एक डायन की पूजा होती है तो यह सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा। नवरात्रि के दिनों में विशेष आयोजन भी होता है।
यह सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन यह हकीकत है छत्तीसगढ़ में एक ऐसा गांव मौजूद है जहां पर एक डायन की पूजा होती है और उस गांव में डायन का मंदिर भी है जहां ज्योत जलाी जाती है। इस मंदिर को परेतिन दाई माता मंदिर के नाम से जाना जाता है।
अमूमन लोग प्रेत, प्रेतात्मा या डायन के नाम से ही डर जाते हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ के झिंका गांव के लोग इन्हें माता मानकर श्रद्धा से पूजते हैं। यहां एक छोटा सा मंदिर भी है, जिसे ‘परेतिन दाई माता मंदिर’ कहा जाता है।
यह मंदिर सिकोसा से अर्जुन्दा जाने वाले रास्ते पर स्थित है और पूरे बालोद जिले में लोग इसे परेतिन दाई के नाम से जानते हैं। नवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं और मंदिर में ज्योत प्रज्वलित की जाती है।
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इस अनोखे मंदिर की कहानी जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख…
नवरात्रि में परेतिन दाई की मान्यताएं
झींका गांव की सरहद में स्थित परेतिन दाई मंदिर श्रद्धा और आस्था का वह प्रतीक है, जो इसे पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध बनाता है। बालोद जिले में स्थित यह मंदिर पहले एक वृक्ष से जुड़ा हुआ था, और माता का प्रमाण आज भी उस वृक्ष पर मौजूद है।
इस वृक्ष के सामने से गुजरने वाला हर व्यक्ति सिर झुकाकर ही आगे बढ़ता है, और यह विश्वास किया जाता है कि यहां मांगी गई हर मनोकामना अवश्य पूरी होती है। विशेष रूप से, परेतिन दाई संतानहीन महिलाओं को संतान सुख का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
स्थानीय निवासी नारायण सोनकर, जो सब्जी व्यापारी हैं, बताते हैं कि जब भी वे इस मंदिर से गुजरते हैं, तो माता को सब्जियां अर्पित करना नहीं भूलते। उनका मानना है कि ऐसा करने से माता का आशीर्वाद बना रहता है और उनका व्यापार उन्नति की ओर अग्रसर होता है।
वहीं, गांव के एक अन्य श्रद्धालु नारायण सिंह बताते हैं कि यदुवंशी (यादव और ठेठवार) समुदाय के लोग जब भी मंदिर से बिना दूध अर्पित किए निकलते हैं, तो उनका दूध फट जाता है। यह घटना कई बार हो चुकी है, जिससे यह मान्यता और भी प्रबल हो गई है कि माता को दूध चढ़ाना अत्यावश्यक है।
गांव में बड़ी संख्या में ठेठवार समुदाय के लोग रहते हैं, जो रोज़ाना दूध बेचने के लिए आसपास के क्षेत्रों में जाते हैं। उन्होंने अनुभव किया है कि अगर वे जानबूझकर माता को दूध नहीं चढ़ाते, तो उनका दूध खराब हो जाता है। (नवरात्रि) इसी कारण, यहां के लोग माता को दूध अर्पित करना अपनी परंपरा और आस्था का हिस्सा मानते हैं।
यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक मान्यताएं और चमत्कारिक घटनाएं इसे और भी विशेष बनाती हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और माता के दर्शन करके अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
यह स्थान न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है, बल्कि भक्तों के लिए एक आश्रय स्थल भी है, जहां वे अपनी आस्था को मजबूत कर सकते हैं और मां परेतिन दाई के दिव्य आशीर्वाद का अनुभव कर सकते हैं।
चैत्र नवरात्रि में परेतिन दाई माता मंदिर में विशेष आयोजन किया जाता है। माता के सामने ज्योत भी जलाई जाती है।
नवरात्रि पर माता के दरबार में भव्य आयोजन
दशकों से इस मंदिर की मान्यता चली आ रही है कि इस मार्ग से कोई भी मालवाहक वाहन या व्यक्ति गुजरते हैं और किसी प्रकार का सामान लेकर जाते हैं, तो उन्हें उस सामान का कुछ अंश मंदिर में अर्पित करना आवश्यक होता है।
चाहे वह खाने-पीने का सामान हो या फिर घर निर्माण में उपयोग किए जाने वाले सामान, हर व्यक्ति को अपने वाहन में से कुछ हिस्सा यहां चढ़ाना जरूरी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता है, तो उसके साथ कोई न कोई अनहोनी घटना घटित हो सकती है।
यह परंपरा न केवल स्थानीय निवासियों में बल्कि दूर-दराज से आने वाले यात्रियों में भी गहराई से स्थापित हो चुकी है। लोग इसे श्रद्धा और भक्ति से जोड़कर देखते हैं और बिना किसी हिचक के अपनी आस्था प्रकट करते हैं। (नवरात्रि) यह मंदिर एक प्रकार से सुरक्षा और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, जहां श्रद्धालु अपनी सुख-समृद्धि की कामना लेकर आते हैं।
विशेष रूप से चैत्र और क्वार नवरात्रि के अवसर पर माता के इस दिव्य दरबार में भव्य आयोजन किए जाते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों तक यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां एकत्र होते हैं।
इस पावन अवसर पर ज्योति कलश की स्थापना की जाती है, जो श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति का प्रतीक होता है। वर्तमान में 100 से अधिक ज्योति कलश यहां प्रज्वलित किए गए हैं, जो मंदिर की आध्यात्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाते हैं।
सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस अनूठी परंपरा और मान्यता का महत्व आज भी इस गांव में अटूट रूप से कायम है। पीढ़ी दर पीढ़ी इस परंपरा का पालन किया जा रहा है और यह मंदिर लोगों की गहरी आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह स्थान न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।