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28-02-2025 Vol 19

जानलेवा है ‘स्टेरॉयड के साथ व्यायाम

आपने अक्सर सुना होगा कि एक्सरसाइज करते हुए हार्ट अटैक आ गया। ज्यादातर मामलों में ऐसा होता है ऐनाबोलिक स्टेऱॉयड और रजिस्टेंस एक्सरसाइज के मेल से।सवाल है स्टेरॉयड है किस बला का नाम? तो आसान भाषा में यह वो जादुई दवा है जो मरते इंसान को बचा लेती है। इनका इस्तेमाल होता है अस्थमा, कैंसर, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन, इरेगुलर पीरियड्स और एड्स जैसी बीमारियों के इलाज में। वास्तव में ये हमारे शरीर में पाये जाने वाले हारमोन्स ही हैं, लेकिन दवा के रूप में जब इन्हें लैब में बनाते हैं तो ये कहलाते हैं स्टेरॉयड।

हर अविष्कार का मकसद होता है कि इससे मानवता का भला हो।लेकिन मनुष्य इनका कैसे इस्तेमाल करेगा यह अविष्कार करने वाला तो दूर भगवान भी नहीं जानता। आप रिवॉल्वर को ही ले लीजिये, कोल्ट ने बनायी थी सेल्फ डिफेंस के लिये लेकिन आदमी तो आदमी ठहरा, सेल्फ डिफेंस से ज्यादा इस्तेमाल किया कत्ल करने में। इतिहास ऐसे तमाम उदाहरणों से भरा पड़ा है, जहां अच्छा करने के लिये बनायी गयी चीजों का दुरूपयोग एक्सट्रीम में हुआ। आज की तारीख में यही हाल है ‘स्टेरॉयड का, जिन्हें बनाया गया था जिंदगी बचाने के मकसद से लेकिन इस्तेमाल हो रहा है बॉडी बिल्डिंग और सेक्स पॉवर बढ़ाने में। वैसे तो इसमें भी कोई बुराई नहीं अगर हद न पार हो, समस्या तब शुरू होती है जब ज्यादा पाने के लालच में इनका मिसयूज होता है और रिजल्ट सामने आता है कुरूपता, अपंगता या सडन डेथ के रूप में।

अब आपके दिमाग में सवाल उठ रहा होगा कि ‘स्टेरॉयड है किस बला का नाम? तो आसान भाषा में यह वो जादुई दवा है जो मरते इंसान को बचा लेती है। इनका इस्तेमाल होता है अस्थमा, कैंसर, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन, इरेगुलर पीरियड्स और एड्स जैसी बीमारियों के इलाज में। वास्तव में ये हमारे शरीर में पाये जाने वाले हारमोन्स ही हैं, लेकिन दवा के रूप में जब इन्हें लैब में बनाते हैं तो ये कहलाते हैं ‘स्टेरॉयड। साइंटफिक लैंग्वेज में ये बॉयो-एक्टिव कार्बन कम्पाउंड हैं जो सभी जीवित प्राणियों और पेड़-पौधों में होते हैं। इनका काम है सेल्स मेम्ब्रेन की फ्लुडिटी बदलकर सेल्स मॉलीक्यूल्स को सिगनल भेजने का, जिससे हमारे ऑर्गन्स ठीक से काम करते रहें।

इनके चार टाइप हैं एनाबोलिक, कोर्टीको-’स्टेरॉयड, प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन। इनमें अगर किसी का सबसे ज्यादा मिसयूज हुआ तो वह है एनाबोलिक, बाकियों का इस्तेमाल तो इलाज में ही होता है। आजकल ‘स्टेरॉयड की तरह ही HGH यानी ह्यूमन ग्रोथ हारमोन्स का इस्तेमाल होने लगा है कहा जा रहा है कि ये ज्यादा सेफ हैं। लेकिन असलियत तो वक्त ही बतायेगा।

एनाबोलिक ‘स्टेरॉयड, जो सिंथेटिक रूप है मेल सेक्स हारमोन, टेस्टोस्टेरॉन का। टेस्टोस्टेरॉन से ही टीनेज में लड़कों की सेक्स ग्लैंड विकसित होने के साथ चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ और आवाज में भारीपन आता है। यह पुरूषों में मर्दानगी का कारण तो है ही, महिलाओं में कामेच्छा और हड्डियों की मजबूती भी इसी से आती है। लेकिन महिलाओं में होता है यह अत्यन्त अल्प मात्रा में। जहां पुरूषों में इसका स्तर रहता है 300-1000 के बीच वहीं महिलाओं में होता है 15-70 के बीच।

इसे बनाया गया था स्पोर्ट्स इंजरी से जल्द रिकवरी और मसल लॉस वाली बीमारियों जैसे एड्स, कैंसर और किडनी डिजीज बगैरा के इलाज के लिये। कारण इसकी एक्सट्रा डोज शरीर में प्रोटीन सिंथेसिस फास्ट करके मसल ग्रोथ, मसल पॉवर, RBC प्रोडक्शन और बोन डेन्सिटी बढ़ाती है। लेकिन इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ परफॉरमेंस इन्हेन्सिंग ड्रग के रूप में।

यह शारीरिक क्षमता को उसकी सीमाओं से परे ले जाता है। स्ट्रेन्थ स्पोर्ट्स में एनाबोलिक स्टीराइड्स का प्रयोग मसल गेन, स्ट्रेन्थ और पॉवर आउटपुट बढ़ाने में किया जाता है जबकि आम लोग इसे बॉडी बिल्डिंग तथा सेक्स ड्राइव इम्प्रूव करने में यूज करते हैं। अब इसे यूज कहेंगे या मिसयूज पता नहीं। WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 20% एथलीट इसकी ओवर डोज से 40 की उम्र से पहले ही मर जाते हैं जबकि 10% अंपगता या इन्फरटीलिटी का शिकार हो जाते हैं।

आपने अक्सर सुना होगा कि एक्ससाइज करते हुए हार्ट अटैक आ गया। ज्यादातर मामलों में ऐसा होता है ऐनाबोलिक स्टीराइड्स और रजिस्टेंस एक्सरसाइज के मेल से। आप इससे अनुमान लगा सकते हैं कि ये कितना घातक कॉम्बीनेशन है। स्टीरॉइड की ओवरडोज से ब्लड में हीमोग्लोबिन और हीमेटोक्रेट बढ़ जाता है। इसके साथ HDL यानी अच्छा कोलेस्ट्रॉल घटने और LDL यानी खराब कोलेस्ट्रॉल इन्क्रीज होने से ब्लड गाढ़ा हो जाता है। ऐसी कंडीशन में रजिस्टेंस एक्सरसाइज करने से हार्ट के लेफ्ट वेन्ट्रीकल का साइज बढ़ता है जो कारण बनता है हार्ट अटैक या स्ट्रोक का।

इसका सबसे बुरा असर तो लीवर पर पड़ता है वह भी तब, जब आप इसे लम्बे समय तक टेबलेट, सीरप या पाउडर के रूप में लेते रहें। इससे शरीर में AST और ALT का स्तर बढ़ता है जिसका रिजल्ट सामने आता है लीवर फेल होने के रूप में।

एक्चुअली ये एडिक्टिव होते हैं इसलिये डिपेन्डेंसी बढ़ने से व्यवहार आवेगी हो जाता है। बहुत से लोग तो मूड स्विंग, पैरानोइया तथा डिल्यूजन्स का शिकार हो जाते हैं। कुछ को बॉडी डिस्मोर्फिया हो जाता है जिससे बॉडी शेप बिगड़ती है और चेस्ट मसल की तुलना में टांगे पतली नजर आने लगती हैं। अगर लम्बे समय तक इनका सेवन जारी रहे तो शरीर में इनका बनना कम होने से स्पर्म काउंट घटता है, इन्फरटीलिटी और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी प्रॉब्लम्स आने लगती हैं।

बॉडी बनाने के चक्कर में बहुत सी महिलायें इनका सेवन करने लगती हैं वह भी बिना डॉक्टर की सलाह के। लम्बे समय तक इसे लेने से आवाज भारी, चेहरे व शरीर पर अनचाहे बाल, इरेगुलर पीरियड्स, सपाट सीना और क्लिटोरियस बढ़ने से मर्दानापन झलकने लगता है।

अगर इनकी Availability की बात करें तो दुनिया के ज्यादातर देशों में ये प्रतिबन्धित हैं, इसलिये ज्यादातर स्टीराइड्स ब्लैक मार्किट में मिलते हैं इसलिये यह भी पक्का नहीं है कि स्टीराइड्स के नाम पर क्या बिक रहा है। हमारे देश में तो स्थिति और भी खराब है। यहां स्टेरॉइड अवेयरनेस न के बराबर है, लोग दूसरों की देखा-देखी इन्हें लेने लगते हैं।

याद रहे ये एडिक्टिव होते हैं इसलिये इन्हें अचानक बंद न करें अन्यथा क्रेविंग, फटीक, रेस्टलेसनेस, मूड स्विंग, डिप्रेशन, इन्सोमनिया और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसे विड्रॉल सिम्पटम्स आ सकते हैं। ऐसी किसी भी परेशानी से बचने के लिये इन्हें बंद करने से पहले डॉक्टर से बात करें।

हमेशा यही प्रयास करें कि शरीर में इनका स्तर प्राकृतिक रूप से ठीक रहे और ‘स्टेरॉयड बाहर से लेने की जरूरत न पड़े। इसके लिये बैलेंस डाइट लें जिसमें  शामिल हो हरी सब्जियां, विटामिन A, C, D, जिंक, मैंग्नीशियम और प्रोटीन रिच फूड आइटम्स जैसे दूध, दही, अंडे, चिकन, फिश, सूखे मेवे, साबुत अनाज और दालें। साथ ही फैट, चीनी और नमक का सेवन कम करें। अगर बॉडी बिल्डिंग का शौक है तो एक अच्छे डॉयटीशियन की सलाह से अपना डाइट चार्ट बनायें और उसे फॉलो करें।

विष्णु प्रिया सिंह

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