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24-04-2025 Vol 19

महाकुंभ का 12 साल का इंतजार, जानें इसका धार्मिक रहस्य

Maha kumbh 2025: सनातन धर्म में कुंभ मेले का अत्यधिक महत्व है, और इसे विशेष रूप से revered माना जाता है। इस मेले में लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है, जो अपने धर्म के प्रति अटूट आस्था दिखाते हैं। साल 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है।

महाकुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में एक बार होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह 12 साल का अंतर क्यों है? इसके पीछे की पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व को समझना आवश्यक है।

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, यह मेला तब लगता है जब ग्रहों की स्थिति ऐसी होती है कि वे विशेष महत्व रखते हैं। इसके अलावा, महाकुंभ में स्नान करने से आत्मा को शुद्धि मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। आइए, इस पौराणिक कथा और इसके पीछे के धार्मिक कारणों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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कब और क्यों शुरू होगा महाकुंभ

पंचांग के अनुसार, महाकुंभ की शुरुआत पौष पूर्णिमा स्नान के साथ होती है और महाशिवरात्रि के दिन अंतिम स्नान के साथ कुंभ पर्व की समाप्ति हो जाती है। साल 2025 में 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी तक कुंभ मेला का कार्यक्रम चलेगा।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाकुंभ समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि जब देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हो रहा था, तो उसमें से कई रत्न निकले थे। सभी रत्नों में अमृत अनमोल रत्न था। अमृत को लेकर देवताओं और दानवों में युद्ध छिड़ गया। ऐसे में भगवान विष्णु ने असुरों से अमृत बचाने के लिए अपने वाहन गरुड़ को दे दिया । जब गरुड़ अमृत लेकर जा रहा था तो छीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदे धरती के चार जगहों यानी प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गया। मान्यता है कि जहां जहां अमृत की बूंदे गिरी थी वहीं पर 12 साल के अंतराल पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

12 साल पर ही क्यों मनाया जाता है कुंभ

पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब राक्षसों और देवताओं के बीच अमृत के लिए 12 दिनों तक लड़ाई हुई थी। वैदिक शास्त्रों के अनुसार, देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के लिए 12 वर्ष के समान होते हैं। इसलिए प्रत्येक 12 वर्ष पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

दूसरा कारण बृहस्पति ग्रह की गति से माना जाता है। मान्यता है जब गुरु बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं और सूर्य देव मकर राशि में आते हैं तो उस समय कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है। वहीं जब गुरु बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में होते हैं और उस दौरान सूर्य देव मेष राशि में आते हैं, तो उस समय हरिद्वार में कुंभ मेले का आयोजन होता है।

ज्योतिषियों के अनुसार, जब सूर्य और गुरु बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं तो महाकुंभ मेला का आयोजन नासिक में लगता है और जब देव गुरु बृहस्पति सिंह राशि में रहते हैं और ग्रहों के राजा सूर्य मेष राशि में होते हैं तो कुंभ मेला का आयोजन उज्जैन में लगता है।

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