भोपाल। हमने एक वह जमाना देखा है, जब संसद में एक दूसरे की बखिया उधेड़ने वाले प्रतिपक्षी नेता राम मनोहर लोहिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू संसद से बाहर निकलते समय एक दूसरे के गले में हाथ डाले नजर आते थे, अर्थात वाणी की वैमनस्यता सदन में ही छोड़ कर आ जाते थे, किंतु आज शीर्ष राजनीति का स्तर काफी निम्न नजर आता है, संसद में उसी प्रतिपक्षी नेता की कुर्सी पर विराजित मौजूदा नेता चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री को “विषैला सर्प” बताते हैं और सत्तारूढ़ दल से जुड़े गुजरात के एक विधायक कांग्रेस की शीर्ष नेत्री को “विषकन्या” की पदवी से विभूषित करते हैं? यह आज की राजनीति का “शो पीस” है, अब राजनीति दलों तक सीमित नहीं रह कर ‘व्यक्ति’ तक आ पहुंची है और राजनीतिक दलों को भी अब ‘जनसेवा’ में कोई रुचि नहीं रही, उनका भी अब एकमात्र उद्देश्य सत्ता का सिंहासन प्राप्त करना ही रह गया है और एक बार इस सिंहासन की प्राप्ति के बाद उसे हर प्रयास से ‘दीर्घ जीवी’ बनाने के प्रयास होते हैं।
क्या अब इस राजनीति के चलते इस देश का राज चलेगा? राजनीति का स्तर जब दल से गिरकर ‘व्यक्ति’ तक आ जाता है, तो फिर उस राजनीति और उसके कर्ता-धर्ताओं का भविष्य क्या होता है? यह किसी से भी छुपा नहीं है। आज तो पक्ष-विपक्ष के नेता एक दूसरे को ‘जानी दुश्मन’ से कम नहीं समझते हैं? जबकि राजनीति पार्टी के दफ्तर व संसद या विधानसभा के सदन तक ही सीमित रहनी चाहिए, आजादी के बाद भारतीय राजनीति का यह मूल मंत्र केवल ढाई दशक ही चल पाया, नेहरू के प्रधानमंत्रीत्व काल के अंतिम दिनों से लेकर आज तक भारत की राजनीति “पाताल लोकमुखी” ही रही और आज भी वह उसी राह पर है और कोई आश्चर्य नहीं कि यह राजनीति पाताल लोकवासी जल्दी हो जाएगी, फिर इस देश का क्या होगा यह कोई नहीं जानता?
…. और राजनीति के गिरते स्तर ने पिछले 5 सालों में तो काफी तेज गति पकड़ ली। आज से 9 साल पहले गुजरात के नेता नरेंद्र भाई मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रतिपक्षी कांग्रेस नेताओं ने उन्हें किन-किन महान पदवियों से नहीं नवाजा? उन्हें ‘मौत के सौदागर’ से लेकर ‘जहरीला सांप’ तक कहा गया। मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के करीब 7 साल पहले तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्षा सोनया गांधी ने गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान
मोदी जी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था, उस वक्त मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इसके बाद 2014 में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने मोदी जी को ‘चाय वाला’ कहकर संबोधित किया था और कहा था कि “यह चायवाला क्या प्रधानमंत्री बनेगा”? इसी बयान को बाद में भाजपा ने चुनावी मुद्दा बना लिया था। इसके बाद 2014 में ही राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान मोदी जी पर ‘जहर की खेती’ करने का आरोप लगाया था, इसके बाद मणिशंकर अय्यर ने मोदी जी को ‘नीच इंसान’ कहा था, यह वाक्या 2017 का है, इसके बाद राहुल गांधी ने मोदी को ‘चौकीदार चोर’ की पदवी से अलंकृत किया। यह पदवी राहुल ने 2019 में एक चुनावी सभा में दी थी, यह पदवी उन्होंने राफेल सौदा का जिक्र करते हुए दी थी। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने एक सभा में मोदी की तुलना लंका के राजा रावण से की थी। यह पदवी 2022 में दी गई और अब इस साल खड़गे ने मोदी को ‘जहरीला सांप’ बता दिया।
…. और अब मोदी जी ने ‘जहरीले सांप’ को अपने आराध्य देव भगवान शंकर का गहना बताकर इस पदवी की गंभीरता को खत्म करने का प्रयास किया। कुल मिलाकर इन पदवियों के माध्यम से आज देश की राजनीति को किस स्तर पर ले जाने का प्रयास किया जा रहा है? क्या यह चिंता का विषय नहीं है?