Friday

28-02-2025 Vol 19

‘राजा’ की पावर अटॉर्नी पर भारी ‘नाथ’ का पावर गेम..!

भोपाल। पॉलिटिक्स में परसेप्शन के साथ फैसलों की टाइमिंग बहुत मायने रखती है.. वो कहते हैं तीर कमान से और बात जुबान से निकल जाए तो वापस नहीं लौटते.. इसीलिए राजनीति में बहुत सोच समझकर बोलने की हिदायत दी जाती है…लेकिन फिर भी बड़े बड़े राजनेता ये गाहे बगाहे ही सही जाने अनजाने गलती कर ही बैठते हैं… फिर स्पष्टीकरण और डैमेज कंट्रोल के लिए मजबूर होते..जोश में या आक्रोश में ऐसी बात कह देते हैं कि सफाई देना मुश्किल हो जाता है…ऐसा ही एक बार फिर हुआ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के साथ… जिनकी सहजता कहे या फिर साफगोई.. जिन्होंने नाराज कार्यकर्ताओं को कह दिया कि कपड़े फाड़ना हो तो दिग्विजय के फाड़ो…बस फिर क्या था…इस बयान पर एमपी में कपड़ा फाड़ पॉलिटिक्स शुरु हो गई…

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद सारा दायित्व जिनके ऊपर हाई कमान ने छोड़ रखा है.. वो मध्यप्रदेश कांग्रेस के सबसे अनुभवी दो कर्णधार…दिग्विजय सिंह और कमलनाथ…दोनों के बीच एक बार फिर हुई तकरार जाने अनजाने पहले भी रिश्तो की प्रगाढ़ता और बेहतर समन्वय के दावे के बावजूद विपरीत परिस्थितियों में सामने आती रही…इस बार टिकटों को लेकर दोनों में दिखा कन्फ्यूजन और कुछ हद तक ही सही फ्रस्टेशन… नेतृत्व और उसे टिकट की उम्मीद करने वाले कई नेताओं के विवादित बयान सामने आए फिर उस पर सफाई दी गई.. इस बीच नेताओं- समर्थक कार्यकर्ताओं का आक्रोश उसे लेकर कांग्रेस में एक अलग माहौल बन गया..जो भाजपा सरकार की एंटी इनकंबेंसी और नेता कार्यकर्ता की मची भगदड़ में अपनी जीत का रास्ता तलाश रही थी..नतीजा एक वीडियो ने करा दी कांग्रेस की किरकिरी… इसे कांग्रेस के घोषित मुख्यमंत्री के दावेदार कमलनाथ का सख्त लहजा कहे या ओवर कॉन्फिडेंस के साथ पार्टी में उनकी अपनी मजबूत पकड़.. मुख्यमंत्री शिवराज के खिलाफ बुधनी से फिल्मी दुनिया से आए नये चेहरे विक्रम मस्ताल के टिकट पर सस्पेंस खत्म कर सुरजेवाला के सिर ठीकरा फोड़ना हो..

या फिर भाजपा छोड़ कर आए नेताओं की जोर आजमाइश और वादा खिलाफी से भड़के कुछ कांग्रेस के अपने उम्मीदवार.. संभाल कर आगे बढ़ रही कांग्रेस में एक नई बहस छिड़ गई जिसका डर था कि टिकट वितरण के बाद डैमेज कंट्रोल हमेशा बड़ी चुनौती बन जाता है.. अब तो दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच का संवाद बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर गया.. यह सब उसे वक्त हुआ जब वचन पत्र के जरिए कांग्रेस अपनी प्राथमिकताएं गिना रही थी और दूसरी सूची का सभी को इंतजार था.. इस बीच शिवपुरी में भाजपा छोड़कर आए विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी को टिकट नहीं मिलने पर जमकर बवाल मचा…इतना कि कमलनाथ को जवाब देना मुश्किल हो गया…लिहाजा कार्यकर्ताओं से बोले कि मैं खुद शर्मिंदा हूं…लेकिन कपड़े फाड़ना हो तो दिग्विजय सिंह और जयवर्धन सिंह के फाड़ो.. शिवपुरी सीट पर दिग्विजय सिंह के बेटे के चलते केपी सिंह को पार्टी ने यह सोचकर उम्मीदवार बनाया कि यदि ज्योतिरादित्य यहां चुनाव लड़ते हैं तो उनकी मजबूत घेराबंदी हो सके.. कमलनाथ कि इस दो टूक खरी खरी कहने से पहले कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने वहां मौजूद हर शख्स के मोबाइल फोन बंद करा दिये ताकि रिकार्डिंग न हो पाए…लेकिन एक जाबांज कार्यकर्ता ने सबकुछ रिकार्ड किया…नतीजा जो आग कमलनाथ के बयान से लगी थी…वो वीडियो वायरल होते ही भड़क गई…इसके बाद कमलनाथ को सफाई देनी पड़ी कि उन्होंने तो वो बात मजाक में कही थी… लेकिन मामला इतनी जल्दी ठंडा होने वाला नहीं था…

क्योंकि नाथ ने सख्त लहजे में टिकट वितरण को लेकर नाराजी जाहिर की थी…इसके बाद सवाल उठने लगे कि क्या नाथ और दिग्गी में आपस में ही कोई समन्वय और सांमजस्य नहीं था…जो इस तरह के हालात बने…जब भाजपा ने उस वीडियो पर चौतरफा हमला किया तो आखिरकार वचन पत्र विमोचन के मौके पर इन दोनों नेताओं ने मिलकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की…नाथ ने साफ कर दिया कि उनके नाम पर गालियां दिग्गी राजा को ही खानी होंगी…क्योंकि पावर आफ अटार्नी उन्हीं के पास है…लेकिन चाणक्य दिग्गी राजा ने भी जवाब चुकता करते हुए कहा कि गलती किसकी है इसका भी पता लगना चाहिए…आखिरकार कमलनाथ ने उम्र में बड़े होने का फायदा उठाते हुए दिग्विजय को झुकने पर मजबूर कर दिया…राजा ने भरे मंच से नाथ को सम्मान के साथ सच से वाकिफ भी कराया लेकिन एक जिम्मेदार नेता के नाते अपनी जवाबदेही को समझ कर नाथ का नेतृत्व और उनकी खरी-खरी को स्वीकार भी किया..

लगे हाथ दिग्गी राजा ने भी खुद को शिव की उपाधि दे डाली जो विष पी गए थे…इस पर कमलनाथ भी चुप नहीं रहे और कहा कि आगे भी ऐसे घूंट पीने पड़ेंगे… जाने अनजाने इस पूरे एपिसोड से कुछ बातें साफ हो गई कि टिकट बांटने में कांग्रेस के नेताओं में कार्डिनेशन की कमी ही नहीं मतभिन्नता भी बरकरार रही …वरना शिवपुरी से लेकर बुधनी में आखिर इतनी बड़ी गफलत कैसे हो गई…सवाल ये भी है कि आखिर टिकट वितरण में कमलनाथ की भूमिका कितनी है क्योंकि छिंदवाड़ा के टिकट नकुलनाथ बांट रहे हैं…और शिवपुरी के मामले में नाथ ने पूरा ठीकरा दिग्विजय सिंह पर फोड़ दिया…इसके पहले बुधनी में विक्रम मस्ताल को टिकट देने पर भी जो घमासान हुआ उस पर भी कमलनाथ ने कार्यकर्ताओं से कहा था कि इस बारे में प्रदेश प्रभारी सुरजेवाला से बात करो… सुरजेवाला को वचन पत्र कार्यक्रम में शिरकत करना था लेकिन अचानक उनकी गैर मौजूदगी का संदेश पार्टी द्वारा पहले ही दे दिया गया.. रणदीप सिंह सुरजेवाला को राहुल गांधी का भरोसेमंद माना जाता है जिन्हें खासतौर से मध्य प्रदेश भेजा गया..कुल मिलाकर सवाल क्या कमलनाथ टिकट वितरण की कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते हैं…. या फिर हाई कमान का स्पष्ट संदेश है कि आपको मुख्यमंत्री का चेहरा स्वयं राहुल गांधी घोषित कर चुके हैं लेकिन वो टिकट वितरण में राष्ट्रीय नेतृत्व को चुनौती न दें.

.हालांकि बाद में वचन पत्र विमोचन में इन दोनों ही नेताओं ने हास परिहास के जरिए ही सही लेकिन माहौल को शांत करने की कोशिश की…लेकिन तब तक भाजपा के नेता इस पूरे मामले में चुटकी लेना शुरु कर चुके थे…भाजपा ने इस तकरार और नोंकझोंक को लपका और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने सवाल खड़े कर दिए..सीएम ने इस विवाद को ही कांग्रेस का असली चेहरा बताते हुए कहा कि एक पूर्व मुख्यमंत्री दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री के लिए कह रहा है “जाओ उनके कपड़े फाड़ो, उनके बेटे के कपड़े फाड़ो…”..शिवराज ने छिंदवाड़ा के दो टिकट नकुलनाथ के द्वारा घोषित करने पर भी सवाल उठाया कि कि क्या सोनिया गांधी जी…कमलनाथ जी और नकुलनाथ की कांग्रेस अलग है….?

सीएम ने सीधे पूछा कि कांग्रेस कितनी है…कांग्रेस किसकी है….? और कांग्रेस क्या है ,ये जनता जानना चाहती है….?
भाजपा की ओर से शिवराज ही नहीं प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने भी पावर अटॉर्नी विवाद पर तंज कसे..आखिर भाजपा के नेता भी ये बात जानते हैं कि 2018 में कांग्रेस को एकजुट करने की असली मेहनत दिग्विजय सिंह ने ही की थी…ये जानते हुए कि अगर कांग्रेस जीती भी तो वो मुख्यमंत्री की रेस में नहीं होंगे.. इसीलिए जब जब दिग्विजय और कमलनाथ में तल्खी..तकरार नजर आती है..बीजेपी को आनंद की अनुभूति होती है..इसीलिए नाथ और दिग्गी ने अपने बीच हुए मतभेद को मनभेद में तब्दील नहीं होने दिया.. और दुनिया को दिखाने के लिए ही सही लेकिन इस खाई को पाटने की कोशिश की..

यह कोई पहला मामला नहीं जब नाथ और दिग्गी में इस तरह की बातचीत हुई हो…इसके पहले भी कई मौके ऐसे आए जब नाथ ने दिग्गी के प्रति नाराजी जाहिर की…लेकिन कलह से सुलह तक के इस पूरे एपिसोड में एक बात तो माननी पड़ेगी कि नाथ के ऐसे रवैये के बावजूद दिग्विजय ने खुद पर उनके अधिकार को खत्म नहीं होने दिया…नाथ भले नाराज हो जाते हों लेकिन दिग्विजय की मुस्कुराहट कम नहीं होती…आखिर एमपी कांग्रेस का पूरा दारोमदार इन दोनों पर ही तो है…
अब अगर कमलनाथ सरकार के बनने से लेकर गिरने तक और उसके बाद फिर से बिखरी कांग्रेस को एकजुट कर बागी विधायकों की सीटों पर नये चेहरे गढ़ने तक कांग्रेस में जो भी घटनाक्रम हुए उससे एक बात साफ हो गई कि कांग्रेस के इन दो दिग्गजों में पावर ऑफ अटार्नी और पावर गेम की कश्मकश चल रही है..सरकार गिरने की खीझ हो या टिकट बंटने के बाद विरोध प्रदर्शन का टंटा..

नाथ ने साफ कर दिया कि भले ही एमपी के सर्वाधिकार उनके पास सुरक्षित हैं लेकिन किसी भी गलती या चूक की जिम्मेदारी दूसरों को ही उठानी होगी..ये नाथ का पावर गेम ही है कि जेपी अग्रवाल से जब पटरी नहीं बैठी और उनकी सीएम दावेदारी को ही नकारा जाने लगा तो नाथ अपनी पसंद के सुरजेवाला को प्रभारी बनाकर ले आए..इतना ही नहीं नाथ ने ठोक बजाकर कह दिया कि मेरे नाम पर गालियां दिग्विजय को खानी ही होंगी..इसमें मित्रता का भाव ज्यादा था या पीसीसी चीफ और गांधी परिवार के सबसे नजदीक होने का दंभ..ये कहना मुश्किल है..लेकिन इतना जरुर है कि नाथ के पावर गेम के सामने दिग्विजय की पावर आफ अटार्नी कमजोर ही साबित हुई..ये भी तय हुआ कि दिग्विजय ने भले ही 66 सीटों का दौरा कर प्रदेश की जमीनी हकीकत जानकर मजबूत प्रत्याशियों की खोज की हो लेकिन इसके यश से ज्यादा अपयश उनके खाते में आ सकता है..दिग्विजय पावर ऑफ अटार्नी में खुश हैं लेकिन सच यही है कि रजिस्ट्री अभी भी कमलनाथ के नाम ही है..दिग्विजय पर्दे के पीछे रहकर कांग्रेस को मजबूत करने की मेहनत में जुटे हैं…और अब तो नाथ ने उन्हें रोज के झगड़े झंझटों का निपटारा करने का भी प्रभार सौंप दिया..यानि कह सकते हैं कि इस पॉलीटिकल पावर के गेम में पिछली सरकार के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए कमलनाथ पावर आफ अटार्नी देकर भी अपना पावर फिलहाल बचाए और बनाए हुए हैं…

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए शुभ मुहूर्त में 144 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी करने के साथ कांग्रेस ने वचन पत्र के जरिए अपनी सरकार का एजेंडा मीडिया के मार्फत जनता तक पहुंचा दिया.. मतदाताओं को रिझाने जनता को लुभाने के साथ सत्ता के लिए अपनी प्राथमिकता की बात कर कांग्रेस की कोशिश सकारात्मक माहौल बनाने की साफ देखी जा सकती है.. लेकिन कांग्रेस की पॉलिटिक्स में परसेप्शन का बनना बिगड़ना अभी भी जारी है.. कांग्रेस में भाजपा छोड़कर आए नेताओं को सिर माथे पर बैठने के बावजूद बगावत और डैमेज कंट्रोल के बीच मिशन 2023 के लिए कांग्रेस का वचन पत्र जारी किया गया..59 मुद्दों पर केंद्रित 106 पेज की पुस्तिका का पूरा फोकस कमलनाथ पर.. जिन्हें विधायक दल की बैठक की परंपरा को तोड़ते हुए राहुल गांधी अधूरे कार्य पूरे करने के लिए भविष्य का मुख्यमंत्री भी घोषित कर चुके हैं.. वचन पत्र की पुस्तिका में आगे-पीछे और अंदर बाहर कांग्रेस के नाथ का मुस्कुराता और कुछ नया कर गुजरने के लिए कटिबद्ध चेहरा कमलनाथ का ही है.. संदेश बिल्कुल स्पष्ट कि कांग्रेस का मुख्यमंत्री कमलनाथ.. अंदर सुरजेवाला के साथ दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, गोविंद सिंह, कांतिलाल भूरिया अरुण यादव और राजेंद्र सिंह के फोटो नजर आ रहे.. पर पिछड़ों की जबरदस्त पैरवी करने वाले राहुल की कांग्रेस के इस प्रदेश में जीतू पटवारी, कमलेश्वर पटेल ही नहीं पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की मौजूदगी को जरूरी नहीं समझा गया.. उसके बाद चुनाव चिन्ह पंजा और ‘कांग्रेस आएगी खुशहाली लाएगी’ के स्लोगन के साथ फिर मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी नजर आ रही है.. पुस्तिका के पीछे कमलनाथ के बैकग्राउंड में प्रियंका और राहुल की बड़ी फोटो के बीच कमलनाथ और कांग्रेस के महापुरुषों महात्मा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक की फोटो चस्पा की गई है.. जीतू पटवारी ने इंदौर में वचन पत्र की इस लाइन को आगे बढ़ाकर अपनी मौजूदगी का एहसास कराया.. वचन पत्र से पहले मंच पर मीडिया और अपने समर्थकों के बीच कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का संवाद एक नई बहस छेड़ गया तो कई सवाल भी खड़े हो गए.. सवाल नाथ और राजा के बीच ऑल इज वेल या फिर कुछ विशेष टिकटो को लेकर जोर आजमाइश अभी भी जारी है.. क्या इससे इनकार नहीं किया जा सकता.. सवाल प्रदेश अध्यक्ष और सीएम का चेहरा घोषित हो चुके कमलनाथ के विवादित बयान पर यह संवाद डैमेज कंट्रोल की कोशिश थी.. या फिर मर्यादा में रहकर अंदर की बाहर आ जाने पर साफगोई के साथ मुस्कुरा कर एक दूसरे को आरोपों के कटघरे में खड़े करने की एक नई कोशिश.. जिसमें भविष्य की सत्ता से लेकर संगठन में नई जमावट पर पोजिशनिंग नए सिरे से लेना देखा जा सकता.. या फिर विपक्ष में रहते मीडिया मैनेजमेंट का कांग्रेस का एक नया तरीका जिसके जरिए कांग्रेस अपने वचन पत्र को चर्चा में ले आए.. यह सवाल इसलिए क्योंकि नेताओं कार्यकर्ताओं के आक्रोश, गुस्सा, बगावत के बीच कमलनाथ और दिग्गी राजा का हास-परिहास इस बार इशारों-इशारों में बहुत कुछ कह गया..दोनों की अपनी सोच और मन की बात से ज्यादा संदेश उनका लहजा दे गया.. तो हाजिर जवाबी ने दोनों की भूमिका के साथ-साथ चिंता सजगता से ज्यादा जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के बीच एक अलग प्रतिस्पर्धा कुछ ज्यादा ही गौर करने लायक थी..

… मानो मध्य प्रदेश कांग्रेस के इन दो कर्णधारों की जुबान पर दिल की बात आ गई.. चाहे जिम्मेदारी सुनिश्चित करने पर करने की कोशिश कर कार्यकर्ताओं की नजर में खुद को पाक साफ घोषित करना हो या फिर विवादों से पल्ला झाड़कर अपनी स्वीकार्यता सिद्ध करने की कोशिश हो शुरुआत कमलनाथ ने की तो दिग्विजय सिंह ने भी कमलनाथ से ज्यादा उनके पद प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका का हवाला देकर आईना दिखा दिया कि आप अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते.. मंच पर यह संवाद की स्थिति जिसके कारण बनी वह बात कमलनाथ पहले भी कह चुके और उन्होंने अपनी बात को फिर दोहराया लेकिन इस बार मंच पर मौजूद दिग्गी राजा ने समय रहते सीधा हस्तक्षेप कर संदेश पार्टी के समर्थकों को दे दिया तो जिनके टिकट काटे गए और विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा.. उसकी जिम्मेदारी भी अपनी ओर से सुनिश्चित कर दी.. जो भी हो वचन पत्र के मौके पर रणदीप सिंह सुरजेवाला की गैर मौजूदगी हो या फिर बची हुई सीटों पर टिकट के दावेदारों का इंतजार जब खत्म होगा तो कांग्रेस में घमासान रोकने की रणनीति आखिर क्या होगी.. क्योंकि गाली खाने का जिम्मा कमलनाथ इस बार घोषित तौर पर दिग्विजय सिंह को सौंप चुके हैं.. तो फिर सियासी तंज हो या ताना.. उलाहना सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस के मंच पर जिम्मेदार नेताओं का यह ताना-बाना आखिर क्या संदेश देता है..

NI Political Desk

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