Saturday

01-03-2025 Vol 19

देश की सेहत और शेयर बाजार!

Economy crisis, नरेंद्र मोदी के राज में मध्यवर्ग की संख्या और शेयर बाजार की तेजी का मामला पहेली जैसा है। एक संस्था (The People Research on India’s Consumer Economy- PRICE) ने मध्यवर्ग की ऐसी परिभाषा दी है कि वह मध्यवर्ग समझ ही नहीं आएगा। प्रतिमाह नौ हजार रुपए का वेतनभोगी भी मध्य वर्ग में तो 54 हजार रुपए प्रतिमाह की कमाई वाला भी मध्यवर्ग में! सोचें, नौ हजार बनाम 54 हजार रुपए प्रतिमाह के फर्क पर।

ऐसे ही 17 डॉलर से 100 डॉलर (1428 रुपए बनाम 84 सौ) प्रतिदिन की कमाई के लोगों के मध्यवर्ग की परिभाषा है। कोई तुक ही नहीं इस तरह की परिभाषा से भारत के 43 करोड़ लोगों के मध्यवर्ग होने का! मगर इस तरह की तुकबंदियों में इन दिनों आंकड़ों की जो फसल है तो स्वाभाविक है जो शेयर बाजार के निवेशकों की संख्या का आंकड़ा भी पौने नौ करोड़ लोगों का है।

दूसरी तरफ मौजूदा त्योहारी सीजन की ये खबरें हैं, जिनसे साफ जाहिर है कि कथित मध्य वर्ग सिकुड़ता हुआ है। दशहरा-दीपावली में लोगों की खाने पीने की चीजों में खरीदारी पैंदे पर थी। तभी नेस्ले कंपनी के प्रबंधकों के मुंह से बात निकली कि मध्यवर्ग सिकुड़ा है। महंगाई ने लोगों की खरीदारी को घटाया है। ऑटो क्षेत्र में बिक्री घटी तो एफएमसीजी की उपभोक्ता खरीदारी में भी गिरावट है। और जिनकी खरीदारी बढ़ी है वह अमीर वर्ग है, जिसमें अति महंगे लक्जरी सामानों की रिकॉर्ड तोड़ खरीद है।

Also Read: महाराष्ट्र में सरकार गठन में पेंच फंसा

यह वही ट्रेंड है जो भारत की कुल आर्थिकी में असमानता बढ़ने के ट्रेंड से जाहिर है। 140 करोड़ लोगों की भीड़ में अमीरों के और अमीर होने की रियलिटी हर तरह के खर्च, हर तरह की गतिविधि से साफ जाहिर है। जैसे गुरूग्राम के लक्जरी 50-100 करोड़ रुपए के फ्लैट हाथों-हाथों बुक हो रहे हैं वहीं पुराने इलाकों, छोटे-मध्य शहरों में खरीदारों की कमी की बातें हैं।

एक और अजीब बात। अंतरराष्ट्रीय हालातों से जो महंगाई (सोना-चांदी) और तेजी है उसका सीधे भारत पर असर है और उसमें भारत गंवाता हुआ है। विदेशी संस्थागत निवेशकों की खूब चांदी है। निश्चित ही ऐसा शेयर बाजार के देशी 43 करोड़ लोगों के निवेश की कीमत पर होगा। इस अक्टूबर से विदेशी निवेशकों के भारत से भागने का यदि रिकॉर्ड है तो अनुमान लगा सकते हैं कि वे कितना कमा कर जा रहे होंगे? भारत के घरेलू निवेशक ही पीट रहे होंगे। मध्यवर्ग जब फेस्टिवल सीजन में सिकुड़ा है तो शेयर बाजार में क्या करता हुआ होगा?

Also Read: खड़गे ने बड़े बदलाव की जरुरत बताई

सो, बाजार और शेयर बाजार दोनों में भारत का मध्यवर्ग जर्जर दशा में है। सरकारी अफसरों और भ्रष्टाचार के गलियारों में कमाने वालों को छोड़ें तो पैसा या तो सरकारी फिजलूखर्ची में जाया होता हुआ है या ब्लैक होता हुआ है। ताजा (चीन, डोनाल्ड ट्रंप तथा अडानी ग्रुप) सुर्खियों ने और वे हालात बनाए हैं, जिनसे विदेशी संस्थागत निवेशकों को शेयर बाजार से लगातार भागना ही है। इनका भागना मतलब देशी निवेशकों पर मंदी की मार।

वैसे जानकारों को मालूम करना चाहिए कि पिछले दस वर्षों में विदेशी एफआईआई ने भारत में कितना मुनाफा कमाया और उनके खेले में भारत के कथित करोड़ों निवेशकों की जेबें कितनी खाली हुईं? कितने ठगे गए? जाहिर है विकास के अमृतकाल में 140 करोड़ लोगों की बचत और उनकी हैसियत जैसी सिकुड़ी है, गिरी है वह भारत के आर्थिक इतिहास का एक अलग ही अध्याय है!

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *