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24-04-2025 Vol 19

राहुल ठाने कि कांग्रेसी केवल उनका इस्तेमाल न करें!

राहुल गांधी ने ठान लिया था कि कोई साथ आए या न आए मैं अकेला हीचलूंगा।राहुल को क्यों कहनी पड़ी थी यह बात कि में अकेले चलूंगा। क्योंकि जिससभा में कहा था वहां लोग उनसे माफी की मांग कर रहे थे।….परिणाम आएंगे। लेकिन राहुल को और अगर उनके पास वाकई उनकी चिन्ता करनेवाला देश और राजनीति को समझने वाला कोई है तो उसे याद रखना चाहिए रनर केसहारे रन नहीं बनते हैं। रनर कभी, थोड़े से समय के लिए होता है। अगर लंबारख लिया जाए तो बैट्समेन को रन आउट करवा देता है।

कांग्रेसियों की मौज हो गई! राहुल गांधी की यात्रा और यात्रा में भयानकशीतलहर में भी उनका केवल हाफ टी शर्ट में रहना, राजनीति से ज्यादा धर्म,दर्शन, अध्यात्म की बातें करना कांग्रेसियों का रास आ रहा है। राहुल तो खुद को तपस्वी कह रहे हैं मगर कांग्रेसी उनमें कोई सुपर पावर देखने लगेहैं। कांग्रेसियों को ऐसा ही नेता चाहिए। जो कर्म करे और फल उन्हें देदे। अब कांग्रेसियों को थोड़ी जीत की उम्मीदें दिखने लगी हैं। नहीं तो अभी तकवे हताश भाव में वही कहते थे जो भाजपाई कहते हैं कि आएगा तो मोदी ही!राहुल ने वाकई सीन चेंज कर दिया है।

भारत है तपस्वियों का देश। ऐसे में राहुल की बड़ी दाढ़ी और केवल टी शर्टपहनकर देशाटन करना आम जनता को बहुत प्रभावित कर रहा है। वे जब बताते हैंकि गरीब बच्चियों को सर्दी से कंपकंपाते देखकर उन्होंने फैसला किया कि वेभी इस कंपकंपाहट को महसूस करने तक स्वेटर नहीं पहनेंगे तो इसका लोगों परबड़ा असर पड़ा। संवेदना और उससे उपजी करुणा का असर होता है। दूसरों के दर्द को समझनेवालों को जनता भी समझती है। भारत की जनता अशिक्षित हो सकती है मगर उसमेंसहज बुद्धि ( कॉमन सेंस) की कमी नहीं है। यह सिक्स्थ सेंस ( छठी इंद्री)उसमें परंपरा से आई है। अपने जीवन संघर्षों से। मानव अपने अस्तित्व कोबचाने के लिए जो जद्दोजहद करता है उससे उसमें अपने मित्र, शत्रु कीस्वाभाविक पहचान विकसित हो जाती है। और यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है।

तो राहुल के इस वैरागी रूप को जनता बहुत पसंद कर रही है। हालांकिकांग्रेस को यह चाहिए कि इस रूप को एक सीमा से आगे न बढ़ने दे। राहुल कोराहुल ही रहने दें। मगर कांग्रेसियों को तो जो रूप ज्यादा वोट दिलाएगा, सत्ता में लाएगा वही चाहिए। उन्हें राहुल से ज्यादा मतलब नहीं सत्ता सेहै। कांग्रेसी कहने लगे है कि राहुल के अंदर कोई इनर पावर (आंतरिक शक्ति)विकसित हो गई है। जिससे उन्हें सर्दी नहीं लग रही है। अब यह राहुल हीजानते हैं कि वे कैसी कठोर साधना कर रहे हैं। या मां सोनिया गांधी का दिलजानता है या बहन प्रियंका गांधी की बेबसी की वे कुछ नहीं कर पा रही हैं।

भारत में मतलब उत्तर भारत में बहनें अपने भाई को एक दो तो जरूर स्वेटरहाथ से बुनकर पहनातीं हैं। और अगर खुद नहीं बुनतीं तो बाजार से भाई केलिए एकाध तो जरूर लाती हैं। लड़के स्वेटर पहनना कम पसंद करते हैं। मगरमां, बहन जबर्दस्ती जरूर पहना देती हैं। मगर क्या करें राहुल में तो गांधी जी का आत्मा घुस गई। ऐसे ही भारत कीगरीबी और लाचारी देखकर गांधी जी ने केवल आधी धोती पहनने का फैसला कियाथा। और डरो मत भी उनका मंत्र था। जिससे भारत के लोगों में अंग्रेजों केखिलाफ लड़ने की हिम्मत पैदा करके उन्होंने देश को आजाद कराया था।

कांग्रेसियों को गांधी, सोनिया गांधी जैसे नेता ही चाहिए। जो उनके लिए सबकुछ करें और सत्ता से दूर हट जाएं। सत्ता संभालना कांग्रेसी अपनाजन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। संघर्ष करना वे नेहरू गांधी परिवार की ड्यूटी मानते हैं। अभी राहुल ने गीता का जिक्र किया। कर्मण्येवाधिकारस्ते. . .। उन्होंने कहा गीता पढ़िए। कर्म करो। लेकिन कांग्रेसियों ने यह तोसुना नहीं। इससे आगे की अपने मतलब की बात खुद समझ ही ली कि फल हमें देदो।

कांग्रेसी सोनिया गांधी को मना मना कर राजनीति में लाए थे। नरसिंहा रावसरकार तक वे खुश रहे, सत्ता थी। उस समय कभी वे सोनिया को मनाने नहींपहुंचे। सच तो यह है कि उन्हें कभी याद ही नहीं आई कि एक महिला जिसने देशके लिए अपना पति, अपनी सास खो दी है, कैसे दो बच्चों के साथ निर्वासन मेंरहती होगीं। मगर जैसे ही सत्ता गई कांग्रेसियों की बैचेनी बढ़ गई। वीजार्ज जो राजीव गांधी के भी निकट सहयोगी थे लोगों के छोटे छोटे ग्रुप लेजाकर सोनिया जी से मिलवाते थे। ताकि सोनिया को अहसास हो कि लोग उन्हेंयाद करते हैं। चाहते हैं।

सोनिया बेमन से राजनीति में आईं। कांग्रेसियों के मान मनौव्वल से आईं।खतरा उठा कर आईं। अपने और अपने बच्चों के लिए खतरों के बावजूद। खूब आरोपसुने, अपमान सहे मगर कड़ी मेहनत, गांव गलियों की धूल छानकर उन्होंने इसदौर के सबसे बड़े लोकप्रिय नेता रहे अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पलट दी।

हमने कभी किसी कांग्रेसी को इसका विस्तार से विश्लेषण करते नहीं देखा किकैसे विदेशी नागरिक का टेग लगा दी गईं राजनीति में एकदम नई एक महिला नेपचास साल से ज्यादा का राजनीतिक अनुभव रखने वाले, जनता में लोकप्रियएक बड़े कद के नेता की राजनीति खत्म कर दी। 2004 के बाद वाजपेयी खत्म होगए। पहले आडवानी फिर सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और फिर मोदी का युग आ गया।मगर 2004 के बाद वाजपेयी को किसी ने नहीं पूछा।

इधर सोनिया ने युद्ध जीता और गद्दी कांग्रेसियों को सौंप दी।कांग्रेसियों को एक बार गद्दी मिल जाए तो वे फिर मचकने लगते हैं। उन्हेंयाद नहीं रहता कि किन आधारों पर उन्हें सत्ता मिली थी। जनता ने किस लिए वोट दिए थे। वह तो सोनिया को याद था तो उन्होंने किसानों की कर्ज माफीकी। गांव के भूमिहीन किसानों के लिए मनरेगा लाईं। महिलाओं के लिए महिलाबिल पास कराया। हालांकि केवल राज्यसभा में ही हो पाया। मगर वही अपने आपमें बड़ी बात थी। सब विरोध में थे। कांग्रेसी भी। सोनिया ने कहा मुझेमालूम है कांग्रेसी भी इसके विरोध में है। मगर यही प्रतिबद्धता होती है,सिद्धांतों के प्रति की चाहे कोई साथ आए या न आए अगर जरूरी है तो उस कामको कर डालो। सफलता मिलती है। भाजपा अनमनी। बाद में लोकसभा में तो उसने साफ मना ही कर दिया था कि नहीं करवाएंगे। सपा, बसपा विरोध में। मगरसोनिया ने वह बिल राज्यसभा से पास करवाकर ही माना।

ऐसे ही राहुल गांधी ने ठान लिया था कि कोई साथ आए या न आए मैं अकेला हीचलूंगा। संयोग है कि जब यह बोला था तो हम वहां अकेले पत्रकार थे। हमें यहट्वीट करने से रोका भी गया। मगर आज इसी वाक्य को सब दोहरा रहे हैं कि यहराहुल का आत्मबल था जो उन्होंने यात्रा शुरू होने से पहले इतना बड़ाआत्मविश्वास दिखाया था। संकल्प लिया था।

राहुल को क्यों कहनी पड़ी थी यह बात कि में अकेले चलूंगा। क्योंकि जिससभा में कहा था वहां लोग उनसे माफी की मांग कर रहे थे। सिविल सोसायटी केनाम पर वह सभा जोड़ी गई थी। जो यह समझ रही थी कि उनके समर्थन से हीयात्रा चलेगी। कांग्रेस विरोधी मानसिकता के वे लोग कह रहे थे कि अतीत मेंकांग्रेस ने बहुत गलतियां की हैं। राहुल उनके लिए माफी मांगे तब हम साथदेने पर विचार करेंगे!मगर जनता ने राहुल की यात्रा सफल कर दी। कोई इसका श्रेय नहीं ले सकता।

मगर यात्रातो यात्रा है। जैसे कठोर तप के बाद भी तपस्वी शंकर जी से वरदानमांगते थे। राहुल शिव जी का नाम सबसे ज्यादा ले रहे हैं। वैसे भी कश्मीरीपंडितों के अराध्य शिव जी ही होते हैं। उनका सबसे बड़ा त्यौहार महाशिवरात्रि होता है। तो राहुल कहते हैं कि मैं मांगता हूं। सबके शुभ की कामना करता हूं। देशकी। जनता की। तो शुभ क्या है? सत्य क्या है ? सुन्दर क्या है ? जनता कीभलाई। और उसके लिए राहुल को सोनिया की तरह सत्ता दूसरे को नहीं सौंप देनाहोगी। एक बार सरकार में कर के देखा जा चुका है। एक बार अभी संगठन में किखरगे को अध्यक्ष बना दिया।

परिणाम आएंगे। लेकिन राहुल को और अगर उनके पास वाकई उनकी चिन्ता करनेवाला देश और राजनीति को समझने वाला कोई है तो उसे याद रखना चाहिए रनर केसहारे रन नहीं बनते हैं। रनर कभी, थोड़े से समय के लिए होता है। अगर लंबारख लिया जाए तो बैट्समेन को रन आउट करवा देता है।

शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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