Wednesday

23-04-2025 Vol 19

रुख सबको बताना होगा

मेजबान ब्राजील के राष्ट्रपति लूला ने जी-20 के सामने अरबपतियों पर सालाना दो प्रतिशत की दर से वेल्थ टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा है। इस पर भारत सरकार और तमाम राजनीतिक दलों को अपना रुख साफ करना चाहिए।

कांग्रेस ने प्रधानमंत्री से वेल्थ टैक्स प्रस्ताव पर रुख साफ करने को कहा है। यह उचित मांग है, क्योंकि इस वर्ष के जी-20 शिखर सम्मेलन में यह मुद्दा विचार के लिए आएगा। मेजबान ब्राजील के राष्ट्रपति लुई इनेशियो दा सिल्वा उर्फ लूला ने जी-20 के सामने अरबपतियों पर सालाना दो प्रतिशत की दर से वेल्थ टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा है। यह शिखर सम्मेलन 18-19 नवंबर को ब्राजील के रियो द जनेरो में होगा। लेकिन उसके पहले इस पर विचार के लिए लूला ने एक अलग बैठक बुलाई है। यह प्रस्ताव फ्रेंच अर्थशास्त्री गैब्रियेल जुकमैन की अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर रखा गया है। धनपतियों के अपने देश की अर्थव्यवस्था में न्यायपूर्ण टैक्स योगदान को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लूला सरकार ने जुकमैन की टीम से यह अध्ययन करने का अनुरोध किया था। जुकमैन की सिफारिश है कि जी-20 के देश अपने यहां दो फीसदी वेल्थ टैक्स लगाएं, तो उससे दूसरे देश में धन ले जा कर टैक्स से बच निकलने की प्रवृत्ति रुक सकती है।

उधर इस टैक्स से इतनी रकम इकट्ठी होगी, जिससे खासकर विकासशील देश अपने यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन एवं अन्य बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए पर्याप्त बजट जुटा पाएंगे। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ध्यान दिलाया है कि ब्राजील के इस प्रस्ताव को फ्रांस, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका और जर्मनी का समर्थन मिल चुका है। उन्होंने कहा कि भारत में 167 अरबपति हैं, जिन पर दो फीसदी वेल्थ टैक्स लगाया जाए, तो सालाना डेढ़ लाख करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होगा। उससे अनिवार्य सार्वजनिक सेवाओं की फंडिंग की जा सकेगी। रमेश ने प्रधानमंत्री से इस बारे भारत सरकार का रुख स्पष्ट करने को कहा है। लेकिन ये बात गौरतलब है कि पिछले चुनाव अभियान के दौरान प्रधानमंत्री ने जब धनी लोगों पर अतिरिक्त टैक्स लगाने के विचार के खिलाफ आक्रामक प्रचार छेड़ दिया था, तब कांग्रेस ने यह गर्व से कहा था कि भारत में वेल्थ टैक्स को राजीव गांधी सरकार ने खत्म किया था। स्पष्टतः इस प्रश्न पर कांग्रेस समेत विभिन्न दलों का रुख दोहरा है। इसलिए जरूरी है कि इस बारे में सभी अपना रुख साफ करें।

NI Editorial

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