Wednesday

02-04-2025 Vol 19

अनसुलझे सवाल

सुप्रीम कोर्ट को निर्णय पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का संसद ने जो कदम उठाया उसकी संवैधानिकता पर देना था। इस मुद्दे पर चुप रह कर सुप्रीम कोर्ट ने भारत के हर राज्य के भविष्य को अधर में लटका दिया है।

अनुच्छेद 370 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपेक्षित निर्णय दिया। मगर यह फैसला देते हुए उसने कम-से-कम एक बड़े सवाल को अनसुलझा छोड़ दिया। साथ ही उसने एक नया प्रश्न खड़ा भी कर दिया है। अनसुलझा सवाल यह है कि क्या भारतीय संविधान के तहत किसी राज्य का दर्जा गिराकर उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया जा सकता है? नया प्रश्न यह खड़ा हुआ है कि अगर अनुच्छेद 370 को मकसद क्रमिक रूप से जम्मू-कश्मीर का बाकी भारत के साथ एकीकरण था, तो अनुच्छेद 371 एवं उसकी उपधाराओं का मकसद क्या है? अनुच्छेद 371 के तहत भारत के कई राज्यों को स्वायत्तता संबंधी सुरक्षाएं प्रदान की गई हैँ, जैसी 370 से जम्मू-कश्मीर को कई गई थीं। दूसरा प्रश्न सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन नहीं था, इसलिए इस बारे में उससे स्पष्टीकरण की अपेक्षा नहीं थी। लेकिन पहला प्रश्न उसके विचाराधीन था। इस पर उसने निर्णय देने से यह कहते हए इनकार कर दिया कि केंद्र ने उसे जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जे को बहाल करने का आश्वासन दिया है।

इसे विचित्र रुख ही कहा जाएगा। इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट को निर्णय पांच अगस्त 2019 को संसद ने जो कदम उठाया उसकी संवैधानिकता पर देना था। इस मुद्दे पर चुप रह कर सुप्रीम कोर्ट ने भारत के हर राज्य के भविष्य को अधर में लटका दिया है। इसका अर्थ यह है कि भविष्य में कभी कोई सरकार राष्ट्रपति शासन लागू कर उसी प्रक्रिया से किसी राज्य को विभाजित कर सकती है या उसका दर्जा गिरा सकती है, जैसाकि जम्मू-कश्मीर के मामले में किया गया। मतलब यह कि अब संघीय व्यवस्था केंद्र की मर्जी पर निर्भर हो गई है। जबकि बोम्मई फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने संघीय व्यवस्था को भारतीय संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा माना था। केशवानंद भारती से लेकर नौवीं अनुसूची की वैधता से संबंधी मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के बुनियादी ढांचे की रक्षा को अपनी जिम्मेदारी बताया था। तो यह प्रश्न भी उठा है कि जम्मू-कश्मीर का दर्जा गिराने के बारे में दो टूक निर्णय ना देना क्या सुप्रीम कोर्ट का अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना नहीं माना जाएगा?

NI Desk

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