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01-03-2025 Vol 19

प्रगति की दिशा में

भारत में निजी मजहबी दीवानी संहिताओं के साथ-साथ धर्मनिरपेक्ष सिविल न्याय संहिता भी मौजूद है। अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति भी इसके तहत न्याय पा सकते हैं। उनकी ऐसी अर्जी पर अदालतें धर्मनिरपेक्ष संहिता के अनुरूप ही न्याय करेंगी।

शाह बानो प्रकरण भारत में न्याय सिद्धांत की प्रगति को एक झटका था। हालांकि तब सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कुछ अवांछित टिप्पणियां भी की थीं, लेकिन उसकी यह व्यवस्था सही दिशा में थी कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने का हक है। तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने विधायी तरीके से उस व्यवस्था को कमजोर कर गलत मिसाल कायम की थी। उससे उठे विवाद की बहुत भारी कीमत भारतीय संवैधानिक व्यवस्था को चुकानी पड़ी। बहरहाल, 2010 का दशक आते-आते सुप्रीम कोर्ट ने जो न्याय सिद्धांत विकसित किए, उससे उस नुकसान की काफी हद तक भरपाई हो गई। कोर्ट ने स्पष्ट व्यवस्था दी कि भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक समुदायों के लिए दीवानी मामलों में निजी मजहबी संहिता की व्यवस्था है और इन समुदायों के लोग उनके मुताबिक अपनी जिंदगी जी सकते हैं। लेकिन साथ ही भारत में धर्मनिरपेक्ष सिविल न्याय संहिता भी मौजूद है।

इसलिए अल्पसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति इसके तहत न्याय पाना चाहे, तो अदालतें उसकी अर्जी को स्वीकार करेंगी। यानी धर्मनिरपेक्ष सिविल न्याय संहिता के अनुरूप उसे न्याय दिया जाएगा। गुजारा भत्ता मामले में सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला उसी सिद्धांत से प्रेरित है। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने अब कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का हक है। मुस्लिम महिलाएं दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी)-1973 की धारा 125 के तहत अपने तलाकशुदा पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती हैं। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने दो अलग-अलग लेकिन एकमत फैसलों में यह बात कही। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 सिर्फ शादीशुदा महिलाओं पर ही नहीं, बल्कि सभी महिलाओं पर लागू है। धारा 125 में पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण से संबंधित प्रावधान हैं। इसमें कहा गया है कि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति अपना गुजारा चला सकने में असमर्थ अपनी पत्नी के भरण-पोषण की उपेक्षा करता है या इससे इनकार करता है, तो संबंधित पत्नी अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है। अब स्पष्ट किया गया है कि ये धारा सभी भारतीय नागरिकों पर समान रूप से लागू है।

NI Editorial

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