Wednesday

23-04-2025 Vol 19

चिंता तो वाजिब है?

ये तथ्य सचमुच बेतुका लगता है कि भारत में 95.8 फीसदी छातों और 92 प्रतिशत कृत्रिम फूलों की आपूर्ति चीन करता है। ये वो उत्पाद हैं, जिन्हें बनाने के लिए ना तो ज्यादा पूंजी की जरूरत है और ना ही किसी खास तकनीक या कौशल की।

भारत के विदेश व्यापार के बारे में इस वर्ष के पहले छह महीनों के बारे में सामने आई जानकारी से स्पष्ट है कि चीन से कारोबार को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है। जो परिस्थितियां हैं, उनके रहते चीन से व्यापार घाटा पाटने की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) नाम की संस्था ने इस कारोबार का बारीक विश्लेषण पेश किया है। उसने कहा है कि चीन से हो रहे आयात से भारत के सूक्ष्म, लघु एव मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को क्षति पहुंच रही है। छातों, खिलौनों, कुछ प्रकार के वस्त्र, संगीत उपकरणों आदि की देश में होने वाली कुल खपत में आधे से ज्यादा हिस्सा चीनी आयात का है। तो सवाल वाजिब है कि फिर भारतीय छोटे उद्यम कैसे आगे बढ़ेंगे? जीटीआरआई ने कहा है- ‘चीनी उत्पाद इतने सस्ते हैं कि भारतीय एमएसएमई के लिए उनसे प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो जाता है। उन्हें अपने को बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।’ ये तथ्य सचमुच बेतुका लगता है कि भारत में उपयोग होने वाले 95.8 फीसदी छातों और 92 प्रतिशत कृत्रिम फूलों की आपूर्ति चीन करता है।

ये तमाम वो उत्पाद हैं, जिन्हें बनाने के लिए ना तो ज्यादा पूंजी की जरूरत है और ना ही उसमें किसी खास तकनीक या कौशल की जरूरत पड़ती है। इन क्षेत्रों में भारतीय उद्यम नहीं फले-फूलेंगे, तो फिर हाई टेक क्षेत्रों में भारतीय उद्यमी क्या कर पाएंगे? इस वर्ष के पहले छह महीनों में भारत ने चीन से 50.4 बिलियन डॉलर का कुल आयात किया। इसी दौर में व्यापार घाटा 41 बिलियन डॉलर से ऊपर पहुंच गया। भारत के पूर्व नौकरशाहों के थिंक टैंक जीटीआरआई ने कहा है कि भारत को मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में गहरा निवेश करना चाहिए, ताकि चीन पर देश की यह निर्भरता घटाई जा सके। यह कोई नया सुझाव नहीं है। सवाल है कि ऐसा आज तक क्यों नहीं किया गया और आगे ऐसा हो सकने की क्या संभावना है? चीन ने सब्सिडी, सस्ते इन्फ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता और नियोजन का व्यापक ढांचा खड़ा कर रखा है। इस परिस्थिति में उसका वर्चस्व तोड़ने का क्या रास्ता है?

NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *