Wednesday

23-04-2025 Vol 19

ध्रुवीकरण और अज्ञान

भारतीय समाज अभी ऐसे दुश्चक्र में फंसा हुआ है, जब राजनीतिक जनमत तथ्य और तर्क से नहीं, बल्कि बनाई या थोपी गई निराधार धारणाओं से तय हो रहा है। एक हालिया सर्वे का यही निष्कर्ष है।

तमाम समाजों के अनुभवों से यह साफ हो चुका है कि राजनीतिक ध्रुवीकरण का सामूहिक अज्ञान से करीबी रिश्ता है। ये दोनों पहलू एक दूसरे के लिए खाद-पानी का काम करते हैं। इनमें किससे किसकी शुरुआत होती है, यह कहना कठिन है। लेकिन एक बार जब दोनों परिघटनाएं समाज पर हावी हो जाती हैं, तो फिर वे एक-दूसरी जमीन मजबूत करने लगती हैं। उस हाल में समाज में ऐसा दुश्चक्र बनता है, जिससे निकलना आसान नहीं रह जाता। दुर्भाग्यवश भारतीय समाज अभी ऐसे दुश्चक्र में फंसा हुआ है, जब राजनीतिक जनमत तथ्य और तर्क से नहीं, बल्कि बनाई या थोपी गई निराधार धारणाओं से तय हो रहा है। 1980 के बाद जन्मे लोगों के नजरिए पर यूगोव-मिंट-सीपीआर के हालिया सर्वे का यही सार है। सर्वे के मुताबिक इस उम्र वर्ग के 42 लोगों में सियासी धुव्रीकरण की स्थिति स्ट्रॉन्ग यानी अडिग अवस्था में है, जबकि 24 अन्य प्रतिशत लोगों थोड़े उदार नजरिए के साथ ध्रुवीकृत हैं। इस तरह सियासी ध्रुवीकरण के वर्ग में इस उम्र वर्ग की भारतीय आबादी का दो तिहाई हिस्सा फंसा हुआ है। 

अब उनके ज्ञान का स्तर देखिए। 46 प्रतिशत लोगों की राय है कि भारत को जी-20 की अध्यक्षता नरेंद्र मोदी की प्रभावी विदेश नीति की वजह से मिली है। यह रोटेशनल आधार पर मिली है (जो तथ्य है), ऐसा मानने वाले सिर्फ 24 प्रतिशत लोग हैं। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के समर्थक लोगों के बीच 54 प्रतिशत मानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था चीन से बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। जबकि इंडिया गठबंधन के समर्थकों में ऐसा मानने वालों की राय 30 प्रतिशत है। अब धारणाओं पर गौर करें। एनडीए समर्थकों के बीच लगभग लगभग 55 प्रतिशत लोगों की राय है कि केंद्रीय एजेंसियों का विपक्ष के खिलाफ दुरुपयोग नहीं हो रहा है। जबकि इंडिया समर्थक दो तिहाई लोग मानते हैं कि दुरुपयोग हो रहा है। कुल मिलाकर चूंकि भाजपा के पक्ष में जाने वाली सही या गलत धारणाओं से प्रेरित लोगों की बहुसंख्या है, इसलिए फिलहाल भाजपा का राजनीतिक समर्थन क्षीण होता नजर नहीं आ रहा है। जाहिर है, ऐसी धारणाएं मजबूत करने में मेनस्ट्रीम मीडिया का बड़ा योगदान है।

NI Editorial

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