Wednesday

02-04-2025 Vol 19

मोदी व विभाजित फ्रांसिसी जनमत

पश्चिमी सरकारों की चिंता अपनी भू-राजनीतिक रणनीति और संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था है। चीन के खिलाफ रणनीति में भारत सहायक भूमिका निभा सकता है और हथियारों के सबसे बड़े आयातक इस देश को अपने हथियार बेचे जा सकते हों, तो वे अपने घोषित उसूलों को छोड़ने के लिए सहज तैयार हैं।

हाल की दो प्रमुख विदेश यात्राओं के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह जरूर अहसास हुआ होगा कि अब उन्हें खासकर पश्चिमी देशों में विभाजित जनमत का सामना करना पड़ रहा है। निसंदेह वहां की सरकारें उन्हें सम्मान में एक दूसरे-से आगे निकलने की होड़ में शामिल दिखती हैं, लेकिन बौद्धिक वर्ग, मीडिया का बड़ा हिस्सा और सिविल सोसायटी के संगठन उनकी यात्रा को उनकी सरकार की ‘अल्पसंख्यक, लोकतंत्र और निजी स्वतंत्रता’ विरोधियों पर अपना विरोध जताने का मौका बना रहे हैं। जून में हुई अमेरिका यात्रा के दौरान इस विरोध के कारण सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए इतनी असहज स्थिति पैदा हुई कि राष्ट्रपति जो बाइडेन के बचाव में पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को मोर्चा संभालना पड़ा। इसी प्रयास में उन्होंने भारत के बारे में एक ऐसी टिप्पणी की, जिससे भारत में एक बड़े तबके की भावनाएं आहत हुईं। अब ऐसा ही फ्रांस में देखने को मिला है। फ्रांस सरकार ने प्रधानमंत्री को अपना सर्वोच्च सम्मान दिया।

लेकिन इसी मौके पर यूरोपीय संसद में मणिपुर के हालात के बारे में प्रस्ताव पारित हुआ, फ्रांस के सबसे प्रतिष्ठित अखबार ला मोंद ने मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ कड़ी टिप्पणी, वामपंथी नेता ज्यां लुक मेलेन्शॉ ने बास्टिल डे समारोह में मोदी को बुलाने के खिलाफ कड़ा बयान जारी किया, और मशहूर अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी सहित कई बुद्धिजीवियों ने राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को पत्र लिख कर ‘भारत की स्थिति’ पर मोदी से बात करने की अपील की। तो साफ है कि भारत को लेकर पश्चिम के लोकतंत्र और आधुनिकता समर्थक समूहों और वहां के सत्ता प्रतिष्ठानों के बीच गहरे मतभेद उभरने लगे हैं। सरकारों की चिंता अपनी भू-राजनीतिक रणनीति और संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था है। अगर चीन के खिलाफ उनकी रणनीति में भारत सहायक भूमिका निभा सकता है और दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े आयातक इस देश को अपने हथियार बेचे जा सकते हों, तो वे अपने घोषित उसूलों को छोड़ने के लिए सहज तैयार हैं। लेकिन यही बात उनके पूरे जनमत के बारे में नहीं कई जा सकती। इसलिए अब प्रधानमंत्री का पश्चिमी देशों में सामना बंटे हुए जनमत से हो रहा है।

NI Desk

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