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05-05-2025 Vol 19

समाधान भी तो बताइए!

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rahul gandhi speech in parliament: अच्छी बात है कि भारत की बढ़ती जा रही आर्थिक समस्याओं के बीच पक्ष और विपक्ष हकीकत से आंखें मिला रहे हैं। मगर बात यहीं ठहर जाती है। यहां से क्या रास्ता है, इस पर सोचने की जरूरत महसूस नहीं की जाती।

राहुल गांधी को इस साफ़गोई का श्रेय देना होगा कि विकराल हो चुकी बेरोजगारी की समस्या को हल करने में पूर्व यूपीए सरकार की नाकामी को उन्होंने दो-टूक स्वीकार किया।

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता का ये कहना हकीकत का बयान है कि ना तो यूपीए और ना ही एनडीए बेरोजगारी का मुकाबला करने में कामयाब हुए।(rahul gandhi speech in parliament)

उन्होंने यह महत्त्वपूर्ण बात भी कही कि 1990 के बाद से सभी सरकारों ने उपभोग को संभालने में बेहतरीन भूमिका निभाई है। लेकिन उत्पादन को संगठित करने में देश का रिकॉर्ड दयनीय रहा है।

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चीन की बढ़त पर चिंता,समाधान पर चर्चा नहीं(rahul gandhi speech in parliament)

गांधी ने कहा कि ‘इसके बदले हमने उत्पादन संगठित करने का काम चीन को सौंप दिया है।’ उत्पादन प्रणाली में बदलाव के साथ बदलती दुनिया में चीन के अग्रणी हो जाने का उन्होंने जिक्र किया और कहा- ‘हम इस स्थिति को स्वीकार नहीं कर सकते।’

तो फिर हमें क्या करना चाहिए, यह नेता विपक्ष ने नहीं बताया। अजीब संयोग है कि चीन की सफलताओं से जितना विपक्ष अचंभित है, उससे कम वर्तमान सरकार नहीं है।

दो वर्ष से लगातार वित्त मंत्रालय की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कारखाना उत्पादन में चीन के बने वर्चस्व का जिक्र हो रहा है।

पिछले हफ्ते पेश रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि वैश्विक मैनुफैक्चरिंग उत्पादन में चीन का हिस्सा 28.8 फीसदी है, जबकि भारत का महज 2.8 प्रतिशत।(rahul gandhi speech in parliament)

इसमें चीनी अर्थव्यवस्था पर बनती गई भारत की निर्भरता का विस्तार से वर्णन है। तथ्यों को ईमानदारी से स्वीकार करना हमेशा अपने फायदे में होता है।

अच्छी बात है कि भारत की बढ़ती जा रही आर्थिक समस्याओं के बीच पक्ष और विपक्ष हकीकत से आंखें मिला रहे हैं। मगर बात यहीं ठहर जाती है।

यहां से क्या रास्ता है, इस पर सोचने की जरूरत महसूस नहीं की जाती। चीन आगे निकल गया है, तो क्यों और कैसे निकला, इस पर ठोस चर्चा क्यों नहीं होती?

क्या संसद इसका सबसे उपयुक्त मंच नहीं है? मगर बात एक दूसरे पर तोहमत से आगे नहीं बढ़ पाती है। नतीजा है चीन-फोबिया का फैलना, जिससे देश में हताशा और गहरी होती चली जाती है।(rahul gandhi speech in parliament)

NI Editorial

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