जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वहां भारत विरोधी ताकतों की हरकतों का खतरा लगातार बना हुआ है। अब अनिवार्य हो गया है कि इस सवाल पर राष्ट्रीय सहमति बने और इस चुनौती का पूरा देश एकजुट होकर मुकाबला करे।
कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों ने जो कत्ल-ए-आम मचाया, उसकी निंदा के लिए हर शब्द नाकाफी है। प्रकृति का नज़ारा देखने देश-विदेश से आए आम लोगों को निशाना बनाना दशहतगर्दों की कायरता की ही मिसाल है। कश्मीर में आतंकवाद का इतना वीभत्स रूप लंबे समय के बाद देखने को मिला है। हाल में रुझान सुरक्षा बलों को निशाना बनाने का रहा है। साधारण लोगों पर कहर ढाने की ऐसी घटनाएं दो दशक पहले आम थी, जब कश्मीर बेहद बुरे दौर में था। जैसाकि स्थानीय लोगों ने कहा है, इस हमले के जरिए आतंकवादियों ने उनकी रोजी-रोटी को भी निशाना बनाया है। बमुश्किल सैलानियों ने कश्मीर का रुख किया है।
फिर से उन्हें भयभीत करने में दहशतगर्द कामयाब रहे, तो उसकी बड़ी मार कश्मीरियों के पेट पर पड़ेगी। स्पष्टतः इस घटना के कई आयाम हैं। फिलहाल माहौल ग़मगीन है। लोग सदमे में हैं। मगर इस माहौल से उबरने के बाद प्रशासन को कुछ गंभीर प्रश्नों से दो-चार होना पड़ेगा। स्थानीय पत्रकारों ने सुरक्षा चूक का जिक्र किया है। बताया है कि घटनास्थल पर तकरीबन दो हजार पर्यटक थे, मगर वहां पुलिस या सुरक्षा बल की टुकड़ियां तैनात नहीं थीं। क्या ये चूक इसलिए हुई, क्योंकि सरकारी पदाधिकारी “आम हालत बहाल हो जाने” के अपने बनाए कथानक से घिरे हुए थे? हाल में ऊंचे स्तरों से ऐसे दावे किए गए हैं। जबकि हकीकत यह है कि जून 2024 के बाद से (यानी केंद्र सरकार के वर्तमान कार्यकाल में) जम्मू और कश्मीर में डेढ़ दर्जन से अधिक आतंकवादी हमले हुए हैं।
पहलगाम की घटना से पहले उन हमलों में 28 मौतें हुई थीँ। इसलिए ऐसे दावों का कोई आधार नहीं है। अब पहलगाम की घटना के बाद सबकी आंखें खुल जानी चाहिए। जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वहां भारत विरोधी ताकतों की हरकतों का खतरा लगातार बना हुआ है। ऐहतियाती चौकसी और राज्य की आम जनता का भरोसा जीतना ही इस चुनौती का मुकाबला करने का एकमात्र रास्ता है। अब अनिवार्य हो गया है कि जम्मू-कश्मीर के सवाल पर राष्ट्रीय आम सहमति बने और वहां मौजूद चुनौती का पूरा देश एकजुट होकर मुकाबला करे।