ट्रंप का प्रोजेक्ट सिर्फ टैरिफ से अमेरिका को होने वाले व्यापार घाटे को पाटने का नहीं है। बल्कि इसके जरिए वे पूरी विश्व व्यवस्था को नए सिरे ढालना चाहते हैं। वे ऐसा ढांचा बनाना चाहते हैं, जिसमें अमेरिकी हित सर्वोपरि हों।
यूरोपियन यूनियन (ईयू) के नेतृत्व ने अगर यह सोचा होगा कि अपने यहां अमेरिकी वस्तुओं पर शून्य टैरिफ करने की पेशकश कर वह डॉनल्ड ट्रंप के “जैसे को तैसा” शुल्क योजना से बच जाएगा, तो उसे मायूसी हाथ लगी है। ट्रंप ने यह कहते हुए प्रस्ताव ठुकरा दिया है कि अतीत में ईयू ने अमेरिका के साथ “बहुत खराब व्यवहार” किया है। ईयू को इससे साफ संदेश मिला होगा कि ट्रंप का प्रोजेक्ट सिर्फ टैरिफ से अमेरिका को होने वाले व्यापार घाटे को पाटने का नहीं है। बल्कि इसके जरिए वे पूरी विश्व व्यवस्था को नए सिरे ढालना चाहते हैं। वे ऐसा ढांचा बनाना चाहते हैं, जिसमें अमेरिकी अभिजात्य के हित सर्वोपरि हों और बाकी सारी दुनिया उसे साधने के लिए काम करे।
दरअसल, दक्षिण कोरिया के कार्यवाहक राष्ट्रपति से फोन पर वार्ता के बाद ट्रंप ने जो कहा, उसके बाद किसी के भी मन में ट्रंप की इस मंशा को लेकर शक नहीं बचना चाहिए। उन्होंने जानकारी दी कि दक्षिण कोरिया की एक टीम बातचीत के लिए वॉशिंगटन पहुंच रही है। फिर कहा- ‘इसी तरह हम अनेक देशों से चर्चा कर रहे हैं। दक्षिण कोरिया की तरह ही हम उनके सामने अन्य मुद्दे भी रख रहे हैं, जिनका संबंध व्यापार और टैरिफ से नहीं है। यह वन स्टॉप शॉपिंग है।’ भारतीय अधिकारियों को इस बात का अहसास पहले ही हुआ होगा, जब टैरिफ घटा कर ट्रंप प्रशासन को मना लेने की उनकी सोच नाकाम हो गई।
अमेरिका ने द्विपक्षीय व्यापार वार्ता में तमाम तरह की “गैर- टैरिफ” बाधाओं से संबंधित मसलों को भी एजेंडे में रख दिया है। “जैसे को तैसा” टैरिफ का एलान करते समय अमेरिकी अधिकारियों ने कहा था कि उन्होंने अन्य देशों में लगने वाले शुल्क की गणना करते समय वहां कथित करेंसी मैनुपुलेशन और गैर-टैरिफ रुकावटों का भी आकलन किया। मगर ईयू के अनुभव से साफ है कि इस विवादास्पद गणना को स्वीकार कर उस आधार पर पेशकश भी अमेरिका को पर्याप्त नहीं लगी है। तो साफ है कि टैरिफ वॉर के जरिए कोशिश सारी दुनिया पर एकछत्र राज करने की है। क्या ये दांव कामयाब होगा?