डॉक्टरों के बिल और बीमा प्रीमियम में तेज बढ़ोतरी के कारण मुनाफे की संभावना बढ़ती जा रही है। इसके अलावा लाइफस्टाइल रोग तेजी से फैल रहे हैं। इन सबसे इलाज के कारोबार में मुनाफा बढ़ने की संभावना मजबूत होती जा रही है।
भारत के अस्पताल और दवा कंपनियों में विदेशी इक्विटी फंड और वेंचर कैपिटलिस्ट बड़े पैमाने पर निवेश बढ़ा रहे हैं। कारण यह बताया गया है कि देश में डॉक्टरों के बिल और बीमा प्रीमियम में तेज बढ़ोतरी के कारण मुनाफे की संभावना बढ़ती जा रही है। इसके अलावा लाइफस्टाइल रोग तेजी से फैल रहे हैं। इससे भी मुनाफा बढ़ने की संभावना मजबूत हुई है। फिर आम तौर पर सौदा (डील) गतिविधियों में यह गिरावट का दौर है। इसके बीच हेल्थ सेक्टर में कारोबार ज्यादा चमकता नजर आने लगा है। नतीजतन, 2023 में अस्पताल और दवा उद्योग में प्राइवेट इक्विटी और वेंचर कैपिटल संस्थाओं ने 5.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया। यह 2022 की तुलना में 25 फीसदी ज्यादा है। प्राइवेट इक्विटी फर्म बेन्स एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के मुताबिक बेन्स कैपिटल, ब्लैटस्टोन ग्रुप और केकेआर जैसी कंपनियों के बड़े अधिकारियों ने हाल में भारत का दौरा किया। कंपनी अधिकारियों की राय है कि भारत में ‘संपत्तियों’ में सही रफ्तार से बढ़ोतरी हो रही है और अधिक कंपनियां इस बाजार में उतर रही हैं।
ये कंपनियां हर आकार के अस्पतालों में निवेश कर रही हैं। बाजार पर नज़र रखने वाली एजेंसी इन्वेस्ट इंडिया के मुताबिक 2027 तक अस्पतालों का राजस्व बढ़ कर 219 बिलियन डॉलर सालाना हो जाने का अनुमान है। मगर स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस ट्रेंड से चिंतित हैं। उनके मुताबिक जहां एक तरफ प्राइवेट अस्पतालों में नए निवेश से उनका स्टैंडर्ड बढ़ रहा है, वहीं सरकारी अस्पताल बजट के अभाव में जर्जर होते जा रहे हैं। निजी अस्पतालों में मुनाफा केंद्रित कंपनियों के निवेश से वहां इलाज की हर गतिविधि महंगी होती जा रही है, जिससे वे आम जन की पहुंच से अधिक दूर होते जा रहे हैं। इस कारण मेडिक्लेम पॉलिसी का प्रीमियम भी पिछले चार साल में लगातार बढ़ा है। सरकारों ने गरीबों के इलाज के लिए बीमा योजनाएं घोषित की हैं। लेकिन इनका लाभ अस्पताल में भर्ती होने पर ही मिलता है। उसके पहले का सारा खर्च अपनी जेब से करना पड़ता है। इसलिए हैरत नहीं, भारत में इलाज पर अपनी जेब से खर्च दुनिया में सबसे ऊंचा बना हुआ है।