प्रश्न है कि उन 19 थाना क्षेत्रों को क्यों छोड़ दिया गया? एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक पिछले लगभग पांच महीनों में मणिपुर में हुई हिंसा की तमाम घटनाओं के बीच तकरीबन 80 फीसदी वारदात उन्हीं थाना क्षेत्रों में हुई हैं।
मणिपुर में बेकाबू हालात के बीच 19 थाना क्षेत्रों को छोड़ कर बाकी पूरे राज्य को अशांत क्षेत्र घोषित किया गया है। यानी वहां सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) कानून लागू हो गया है। प्रश्न है कि उन 19 थाना क्षेत्रों को क्यों छोड़ दिया गया? एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक पिछले लगभग पांच महीनों में मणिपुर में हुई हिंसा की तमाम घटनाओं के बीच तकरीबन 80 फीसदी वारदात उन्हीं थाना क्षेत्रों में हुई हैं। मगर इन क्षेत्रों को इसलिए बख्शा गया, क्योंकि वहां बहुसंख्यक मैतई आबादी रहती है। जबकि जिन क्षेत्रों में अफ्सपा लागू किया गया है, वे पहाड़ी इलाके हैं, जहां ज्यादतर कुकी आबादी ज्यादा है। इस संदर्भ में यह पहलू रेखांकित करने का है कि हिंसा की इस लंबी अवधि में राज्य सरकार- खासकर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पर मैतई समुदाय की तरफ से काम करने के आरोप लगते रहे हैं। राज्य प्रशासन पूरी तरह नाकाम रहा है, यह बात अपने ढंग से देश का सर्वोच्च न्यायालय भी कह चुका है।
इसके बावजूद उनकी पीठ पर केंद्र सरकार का हाथ बना हुआ है। सरकार में कुकी समुदाय को निशाने पर रखने का नजरिया कितना हावी है, इसकी स्पष्ट मिसाल देखनी हो, तो न्यूयॉर्क में विदेश मंत्री एस जयशंकर के दिए बयान पर गौर करना चाहिए। जयशंकर ने म्यांमार से आए शरणार्थियों को हिंसा का प्रमुख कारण बताया। इस तरह मैतई समुदाय की खुद को जनजाति घोषित कराने की मांग और उससे उपजे तनाव जैसी बुनियादी वजह की उन्होंने पूरी उपेक्षा कर दी। अगर समस्या की जड़ों में और भी गहरे झांका जाए, तो प्रमुख कारण के तौर पर संसाधनों- खासकर जमीन से जुड़ी सुरक्षा का पहलू स्पष्ट नजर आता है। जहां तक आइडेंटी पॉलिटिक्स की बात है, तो उसमें दोनों समुदाय शामिल रहे हैं। हिंदुत्ववादी संगठनों के साथ-साथ चर्च ने भी इस होड़ को बढ़ाने में भूमिका निभाई है। किसी निष्पक्ष सरकार का दायित्व इन विभाजन रेखाओं और उनसे जुड़ी आशंकाओं को दूर करना होता। मगर जब सरकार खुद एक पक्ष बन जाए, तो समस्या का निकलना और दूर हो जाता है। इसीलिए अफ्सपा से भी ज्यादा उम्मीद नहीं बंधी है।