हमारे विदेश नीतिकार दावा करते हैं कि भारत सबसे अपने हित साध रहा है। मगर उलटे यह भी संभव है कि दोनों खेमे भारत को दूसरे के साथ पूरी तरह ना जुड़ने देने की रणनीति के तहत उसे महत्त्व देने का दिखावा कर रहे हों।
प्रधानमंत्री ने इस महीने रूस की यात्रा की, जिस पर अमेरिका में तीखी प्रतिक्रिया देखी गई। मोदी मोदी ने मास्को में यूक्रेन युद्ध के खिलाफ प्रतीकात्मक बातें कहीं, जिन्हें पश्चिमी देशों ने ज्यादा तव्वजो नहीं दी। तो कुछ रोज पहले खबर आई कि मोदी अगले महीने यूक्रेन की यात्रा कर सकते हैं। मगर इसे भी पश्चिम में ज्यादा महत्त्व नहीं मिला। इस बीच आसियान की बैठक में हिस्सा लेने विदेश मंत्री एस जयशंकर लाओस गए। वहां उनकी रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात हुई। फिर चीन के विदेश मंत्री वांग यी से द्विपक्षीय वार्ता हुई। वांग के साथ बातचीत के बाद बताया गया कि दोनों विदेश मंत्री मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों पर बेहतर समझदारी अपनाने पर राजी हुए हैं। उसके बाद जयशंकर क्वैड की बैठक में भाग लेने टोक्यो पहुंचे। वहां पहले अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन के साथ द्विपक्षीय बातचीत हुई और फिर उन्होंने क्वैड की बैठक में हिस्सा लिया। बैठक के बाद जारी क्वैड विदेश मंत्रियों के साझा बयान में स्वाभाविक रूप से मुख्य निशाना चीन पर रहा। कहा गया कि क्वैड दक्षिण चीन सागर में जारी “दूसरों को डराने और अन्य खतरनाक” घटनाओं से चिंतित हैं।
जयशंकर ने कहा- “हमारे सामने महत्वपूर्ण सवाल है नियमों पर आधारित व्यवस्था को कायम रखना।” नियम आधारित विश्व व्यवस्था अमेरिकी विदेश नीति का जुमला है। इस तरह भारत ने इससे खुद को संबंद्ध किया है। जबकि रूस और चीन दुनिया में जिस नई उभरती धुरी का नेतृत्व कर रहे हैं, उनका मकसद इस व्यवस्था को तोड़ना और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के नए कायदे कायम करना है। विडंबना है कि भारत अपनी “सबसे जुड़ने” की नीति के तहत इन दोनों खेमों के साथ खड़ा नजर आता है। हमारे विदेश नीतिकार दावा करते हैं कि इस तरह भारत सबसे अपने हित साध रहा है। मगर संभव है कि यह भ्रामक समझ हो। उलटे यह भी संभव है कि दोनों खेमे भारत को दूसरे के साथ पूरी तरह ना जुड़ने देने की रणनीति के तहत उसे महत्त्व देने का दिखावा कर रहे हों। आखिर किसी देश को दुनिया में उतनी ही अहमियत मिलती है, जितनी उसकी ताकत हो।