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01-03-2025 Vol 19

नौ दिन में ढाई कोस!

rahul gandhi :  कांग्रेस में गांधी परिवार के बाहर नेतृत्व देखने की परंपरा नहीं है, इसलिए वहां राहुल गांधी की सर्वोच्च हैसियत कायम रहेगी।

लेकिन इंडिया गठबंधन में उनकी राजनीतिक पूंजी तेजी से क्षीण हुई है। वहां उन्हें नेता मानने की धारणा और कमजोर पड़ेगी।

नौ दिन चले ढाई कोस- यह आम कहावत है। फिलहाल, यह दिल्ली में कांग्रेस पर लागू होती दिखी है। 2015 के विधानसभा चुनाव में लगभग नौ प्रतिशत वोट हासिल करने के बाद 2020 में उसका हिस्सा तकरीबन सवा चार प्रतिशत वोटों तक गिर गया। (rahul gandhi)

अब पांच साल बाद पार्टी उसे दो फीसदी और बढ़ा पाई है। सीटें तो तब से अब तक जीरो ही हैं। इस बीच हुईं दो घटनाएं अहम हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ गठजोड़ किया।

मगर उसके बाद उसने अलग राह अपनाई। इस बीच दो वर्ष से पार्टी नेता राहुल गांधी अपने नए ‘अंबेडकरवादी’ अवतार में हैं। पूरी पार्टी ने भी इसके जरिए बैतरणी पार करने की आस जोड़ी है।

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ओबीसी मतदाताओं में कोई खास पैठ नहीं (rahul gandhi)

मगर सामने यह है कि लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के हिस्से के तौर पर मिली सीमित सफलता के अलावा कांग्रेस का यह दांव अब तक फेल ही रहा है।

दिल्ली में जेनरल सीटों पर कांग्रेस के वोट प्रतिशत में दो फीसदी की बढ़ोतरी हुई, जबकि अनुसूचित जातियों को लिए आरक्षित सीटों में 2.7 प्रतिशत की। (rahul gandhi)

एक चुनाव सर्वे एजेंसी के आंकड़ों के मुताबिक कांग्रेस दलित या ओबीसी मतदाताओं में कोई खास पैठ नहीं बना सकी।

ना ही राहुल गांधी का पॉकेट में संविधान की प्रति लेकर चलना मतदाताओं में कोई आकर्षण पैदा कर पाया है। तो यह सवाल उठेगा कि राहुल गांधी के नए अवतार से पार्टी को क्या लाभ हो रहा है?

इस बीच कांग्रेस हरियाणा, जम्मू और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अनुकूल स्थितियों के बावजूद करारी हार का सामना कर चुकी है। उत्तराखंड के स्थानीय चुनाव में तो वह खाता भी नहीं खोल पाई। (rahul gandhi)

चूंकि कांग्रेस में गांधी परिवार के बाहर नेतृत्व देखने की परंपरा नहीं है, इसलिए वहां उनकी सर्वोच्च हैसियत कायम रहेगी। लेकिन इंडिया गठबंधन में उनकी राजनीतिक पूंजी तेजी से क्षीण हुई है।

अनुमान है कि दिल्ली के चुनाव नतीजों के बाद गठबंधन में शामिल दलों के बीच उन्हें और कांग्रेस को नेता मानने की धारणा और कमजोर पड़ेगी। इसलिए अपेक्षित है कि राहुल गांधी और कांग्रेस अपनी नई राह पर गंभीर आत्म-मंथन करें। (rahul gandhi)

NI Editorial

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