Wednesday

23-04-2025 Vol 19

आसमान से बरसती आग

जलवायु परिवर्तन की चर्चा की सिलसिले में दो शब्द प्रचलित हुए मिटिगेशन और एडैप्टेशन। लेकिन दुनिया भर के धनी और शासक वर्गों ने वैज्ञानिकों की सलाह की सिरे से उपेक्षा की। उनके किए की सज़ा अब दुनिया की बहुसंख्यक जनता भुगत रही है।

दिल्ली के नरेला इलाके में मंगलवार को तापमान 49.9 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। यह अकल्पनीय-सी खबर है। दिल्ली के बारे में हमेशा से धारणा रही है कि यहां ठंड और गरमी दोनों का बेहद तीखा- चुभने वाला रूप देखने को मिलता है। मगर जैसी झुलसाने वाली गरमी अभी पड़ रही है, इसका तजुर्बा यहां कम-से-कम पिछले कुछ दशकों में तो नहीं हुआ था। इसी तरह इस वर्ष जनवरी में ठंड का कहर टूटा। तीखी ठंड के साथ स्मॉग से ऐसा वातावरण बना, जिसमें लोग कई तरह की बीमारियों से पीड़ित होने लगे। थोड़ा पीछे जाएं, तो पिछले जुलाई में दिल्ली की सड़कों पर जिस तरह का बाढ़ का नजारा देखने को मिला, वह भी कई पीढ़ियों के लिए अनदेखी बात थी। यह जो दिल्ली की कहानी है, वह असल में देश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे तजुर्बे का एक नायाब नमूना भर है। वैसे दायरे को थोड़ा और बड़ा करें, तो हम देख सकते हैं कि मौसम की तीव्रता और स्वभाव में परिवर्तन का अनुभव दुनिया भर के लोगों को हो रहा है।

दो वर्षों से यूरोप में अपेक्षाकृत कम ठंड पड़ रही है। उत्तरी अमेरिका के कई हिस्सों में भी ऐसा ही देखने को मिला है। इन सारे अनुभवों का सार यह है कि वैज्ञानिकों ने चार दशक पहले जलवायु परिवर्तन के बारे में जो चेतावनियां देनी शुरू की थीं, उसका अब साकार रूप में हमारे सामने है। तब जलवायु परिवर्तन की चर्चा की सिलसिले में दो शब्द प्रचलित हुए थेः मिटिगेशन और एडैप्टेशन। यानी जलवायु परिवर्तन के कारणों को दूर करने; और संभावित परिवर्तन के प्रभाव से लोगों को बचाने के उपाय। यानी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाना और बदलते जलवायु के मुताबिक खेती एवं रहन-सहन को ढालना। लेकिन दुनिया भर के धनी और शासक वर्गों ने वैज्ञानिकों की सलाह की सिरे से उपेक्षा की। इसलिए कि वे अपनी जीवन-शैली पर कोई समझौता करने को तैयार नहीं हैं। तो उनके किए की सज़ा अब दुनिया की बहुसंख्यक जनता भुगत रही है। आम मेहनतकश लोग बरसती आग के बीच कैसे जी रहे हैं, यह दिल्ली में इसे देखना एक दर्दनाक अनुभव है।

NI Editorial

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