Wednesday

23-04-2025 Vol 19

आपकी सेहत राम भरोसे!

आम इंसान हर तरह की स्वास्थ्य सुरक्षा से बाहर होता जा रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था चौपट होने के साथ गरीब और निम्न मध्यवर्गीय लोग इलाज के लिए राम भरोसे रह गए। अब धीरे-धीरे ऐसा ही सामान्य मध्य वर्गीय लोगों के साथ होने लगा है।

पिछले एक साल में स्वास्थ्य बीमा के प्रीमियम में 50 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। अब खबर है कि जल्द ही इसमें 10 से 15 फीसदी तक की और वृद्धि हो सकती है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इसका कारण भारतीय बीमा विनियमन एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) का बीमा नियमों में परिवर्तन का फैसला है। खुद बीमा उद्योग क्षेत्र में इस पर हैरत जताई गई है कि आईआरडीएआई बीते दो साल में प्रीमियम में भारी बढ़ोतरी की इजाजत देता चला गया है। आम तजुर्बा यह है कि कोरोना काल के बाद से स्वास्थ्य बीमा की पॉलिसियां इतनी महंगी हो गई हैं कि ये आम मध्यवर्गीय परिवार की पहुंच से बाहर जा रही हैं। इसका फायदा प्राइवेट अस्पताल उठा रहे हैँ। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ ऐसे अस्पतालों में उन मरीजों से इलाज का खर्च 27 फीसदी तक अधिक वसूला गया है, जिनके पास स्वास्थ्य बीमा नहीं है। वजह यह है कि बीमा कंपनियों के पास क्लेम का आकलन करने का तंत्र होता है। हर क्लेम का आकलन थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर (टीपीए) करता है।

वह एक विशेषज्ञ होता है, इसलिए प्राइवेट अस्पताल उसे बहका नहीं पाते। जबकि परेशानी की हालत में अस्पताल पहुंचे आम मरीज या उसके परिजनों के लिए अस्पताल से सौदेबाजी करना संभव नहीं हो पाता। उस अखबारी रिपोर्ट में कई बड़े अस्पतालों अधिक भुगतान के चलन के बारे में विस्तार से विवरण दिया गया है। उसमें एक टीपीए का यह कहते हवाला दिया गया है कि कंपनियां मरीज को एक ग्राहक के रूप में देखती हैं और उन्हें सौदेबाजी से अधिकतम बेहतर रेट दिलवाती हैं। इसके अलावा अस्पताल बीमा कंपनियों को डिस्काउंट भी देते हैं, ताकि वे अधिक-से-अधिक मरीजों को उनके यहां जाने की सलाह दें। तो कुल हाल यह है कि आम मरीज हर तरह की स्वास्थ्य सुरक्षा से बाहर होता जा रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के चौपट होने के साथ गरीब और निम्न मध्यवर्गीय लोग इलाज के लिए राम भरोसे रह गए। अब धीरे-धीरे ऐसा ही सामान्य मध्य वर्गीय लोगों के साथ होने लगा है। इसका क्या परिणाम होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है।

NI Editorial

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