Wednesday

23-04-2025 Vol 19

माली हाल का आईना

एफएमसीजी कंपनियों को लेकर निवेशकों की ठंडी प्रतिक्रिया का बड़ा कारण ये धारणा है कि उपभोग बाजार के हाल को देखते हुए निकट भविष्य उनकी बिक्री और मुनाफे में सुधार की गुंजाइश नहीं है। इस रूप में यह सकल अर्थव्यवस्था के हाल का आईना है। 

भारत के शेयर मार्केट में गिरावट बेरोक जारी है। सोमवार को सेंसेक्स 75,000 अंक से नीचे चला गया। बाजार विशेषज्ञों को सूरत सुधरने की फिलहाल संभावना नहीं दिखती। बहरहाल, इसके बीच एक उल्लेखनीय आंकड़ा एफएमसीजी यानी रोजमर्रा के उपभोग की चीजें बनाने वाली कंपनियों के शेयर भाव में जारी गिरावट है। इन कंपनियों के शेयर भाव को लग रहा झटका आम गिरावट से काफी ज्यादा है। निफ्टी एफएमसीजी सूचकांक पिछले सितंबर के बाद से 20.2 प्रतिशत गिर चुका है। इस अवधि में आम निफ्टी सूचकांक में 12.6 फीसदी की गिरावट ही आई है।

2025 के पहले लगभग दो महीनों में भी कोई राहत नहीं मिली है। वैसे इस वित्त वर्ष में (अप्रैल 2024 से) एफएमसीजी इंडेक्स 3.2 प्रतिशत गिर चुका है, जबकि निफ्टी बेंचमार्क इंडेक्स एक फीसदी ही गिरा है। एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनियों का कारोबार बाजार के असल हाल की झलक देता है। आम उपभोक्ता खुशहाली के दौर में सबसे पहले रोजमर्रा के उपभोग को बेहतर करने पर ध्यान देता है। इसके बाद वह टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं की तरफ जाता है। मतलब साफ है। एफएमसीजी कंपनियों की संभावना मद्धम मानी जा रही हो, तो सीधा अर्थ निकाला जा सकता है कि बाकी उपभोग और मांग के विस्तार की स्थिति नहीं है। एफएमसीजी कंपनियों की बिक्री ना बढ़ने का रुझान कई वर्ष पुराना हो चुका है।

चूंकि संभावना भी बेहतर नहीं है, तो इन कंपनियों के बाजार प्रदर्शन में निवेशकों का भरोसा गिरना स्वाभाविक प्रतिक्रिया होगी। यही प्रतिक्रिया एफएमसीजी इंडेक्स में जाहिर हुई है। बाजार में जारी भारी गिरावट की वजह डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ से बन रहे हालात को बताया गया है। कहा गया है कि इस वजह से विदेशी निवेशक भारत से तेजी से पैसा निकाल रहे हैं। एफएमसीजी कंपनियों पर इस ट्रेंड का भी असर पड़ा होगा, लेकिन उनको लेकर निवेशकों की ठंडी प्रतिक्रिया का उससे ज्यादा बड़ा कारण ये धारणा है कि उपभोग बाजार के हाल को देखते हुए निकट भविष्य उनकी बिक्री और मुनाफे में सुधार की गुंजाइश नहीं है। इस रूप में ये ट्रेंड भारत की सकल अर्थव्यवस्था के हाल का आईना है।

NI Editorial

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