मानसून औसत से ऊपर रहेगा। लेकिन यह बताना कठिन है कि सचमुच इस बार सामान्य से पांच प्रतिशत तक ज्यादा बारिश हुई भी, तो ऐसा ठीक किस महीने या पखवाड़े में होगा और किन क्षेत्रों में बारिश का कैसा बंटवारा रहेगा।
मौसम विभाग का अनुमान है कि इस बार मानसून औसत से ऊपर रहेगा। यानी जून से सितंबर तक सामान्य से ज्यादा बारिश होगी। विभाग के मुताबिक ऐसा होने की संभावना 89 प्रतिशत है। संभावना है कि उत्तरी बिहार, उत्तर-पूर्वी राज्यों और तमिलनाडु को छोड़ कर बाकी पूरे देश में सामान्य से ज्यादा बारिश होगी।
ऐसे अनुमानों को सहज ही किसानों के लिए अच्छी खबर के रूप में पेश किया जाता है। परंपरागत समझ है कि बारिश ज्यादा होने पर खरीफ की बेहतर पैदावार होती है, जिससे किसानों की आय बढ़ती है।
मानसून और कृषि: चुनौतियां और अनिश्चितताएं
मगर हालिया तर्जुबा ऐसा नहीं है। पहली बात तो यह कि अभी यह नहीं मालूम है कि अगर सचमुच इस बार सामान्य से पांच प्रतिशत तक ज्यादा बारिश हुई, तो ऐसा ठीक किस महीने या पखवाड़े में होगा और किन क्षेत्रों में बारिश का कैसा बंटवारा रहेगा। मानसून के चार महीनों में किसी एक पखवाड़े में अति वृष्टि हो और बाकी समय लोग आसमान ताकते रहें, तो उससे खेती और उसके नियोजन में कोई मदद नहीं मिलती।
फिर किसी एक क्षेत्र में ही खूब बारिश हो और बाकी कई इलाके सूखे रह जाएं, तो उससे भी कुल फसल पैदावार में कोई मदद नहीं मिलती। जलवायु परिवर्तन के गंभीर होते असर के साथ ऐसी प्रवृत्तियां आम हो गई हैं। जहां तक किसानों की समृद्धि का प्रश्न है, तो उनके फसल की मार्केटिंग और उचित न्यूनतम मूल्य प्राप्त होना सबसे बड़ी चुनौती हैं।
फसल के सीजन में उत्पादों के दम गिर जाने और फिर बढ़ जाने की शिकायतें भी मौसम की असामान्यता की तरह आम हो गई हैँ। इसलिए मानसून में अधिक बारिश की खबर से पैदा हुई उम्मीदों के बीच भी आशंकाओं की गुंजाइश बनी रहती है। पिछले वर्ष मानसून में बारिश सामान्य से आठ प्रतिशत ज्यादा हुई थी।
उसके बावजूद कृषि क्षेत्र में कोई खास खुशहाली आई हो, इसके संकेत नहीं हैं। बहरहाल, यह भी अपने देश की बदहाली की ही मिसाल है कि आज भी हमारी खेती मानसून की मर्जी पर इस हद तक निर्भर है। यह कृषि क्षेत्र में बुनियादी निवेश के अभाव का भी एक जीता-जागता उदाहरण है।
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