राज्यों में शिक्षा माफिया, नेता और अधिकारियों का ऐसा गठजोड़ तैयार हो गया है, जो परीक्षा की घोषणा किए जाने के पहले से ही सक्रिय हो जाता है। ऐसे ताकतवर लोगों के लिए पर्चों को हासिल कर उन्हें लीक कर देना मुश्किल नहीं होता है।
बिहार पुलिस में 21,391 सिपाही की भर्ती के लिए परीक्षा बीते एक अक्टूबर को केंद्रीय चयन परिषद ने आयोजित की थी। लेकिन पेपर लीक हो जाने के कारण उसे तो रद्द कर दिया गया। साथ ही सात और 15 अक्टूबर को होने वाली परीक्षाओं को भी अगले आदेश तक स्थगित करने का एलान किया गया। तो इस तरह एक बार फिर लाखों नौजवानों की उम्मीद पर पानी गिराया गया है। लेकिन यह नई बात नहीं है। कई अन्य राज्यों में भी यही कहानी है। बिहार में तो हाल के वर्षों में ली गई लगभग 90 प्रतिशत परीक्षाओं को रद्द किया गया है। भ्रष्टाचार, प्रशासनिक अयोग्यता और लापरवाही की यह इंतहा है। प्रभावित छात्र अक्सर ऐसी शिकायतें जताते सुने जाते हैं कि सरकारें नौकरी देना नहीं चाहतीं, इसलिए परीक्षा कार्यक्रम का एलान वे महज एक भ्रम बनाए रखती हैं। साथ ही यह भ्रष्टाचार का भी एक बड़ा जरिया बन गया है।
इससे इस घोटाले में शामिल सभी तत्व अपना फायदा उठा लेते हैं, जबकि एक अदद नौकरी की उम्मीद लगाए बैठे लाखों नौजवानों को बार-बार नाउम्मीद किया जाता है। बिहार के पुलिस मुख्यालय के अनुसार पेपर लीक के केवल इस मामले में प्रदेश के 24 जिलों में 74 एफआईआर दर्ज की गई है। विभिन्न जगहों से 150 लोग गिरफ्तार किए गए हैं। इनके पास से बड़ी संख्या में ब्लूटूथ डिवाइस, वॉकी-टॉकी, एंटी जैमर, मोबाइल फोन, परीक्षार्थियों के दस्तावेज और नकदी की बरामद की गई। बिहार सरकार की आर्थिक अपराध इकाई इस मामले की जांच कर रही है। मगर ऐसी बातों से उन छात्रों को शायद ही राहत मिल सकती है, जो अपने संसाधन लगाकर और कड़ी परिश्रम से परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, जबकि सरकार उन परीक्षाओं का आयोजन भी दोषमुक्त ढंग से नहीं कर पाती। इसलिए इस आरोप में दम मालूम पड़ता है कि बिहार और अन्य राज्यों में शिक्षा माफिया, नेता और अधिकारियों का ऐसा गठजोड़ तैयार हो गया है, जो परीक्षा की घोषणा किए जाने के पहले से ही सक्रिय हो जाता है। ऐसे गिरोहों में इतने ताकतवर लोग शामिल हैं कि उनके लिए पर्चों को हासिल कर उन्हें लीक कर देना मुश्किल नहीं होता है।