ट्रंप पहले जैसे सॉफ्ट पॉवर की जरूरत महसूस नहीं करते। इसके विपरीत वे अमेरिका को धुर दक्षिणपंथ- रूढ़िवाद का वैश्विक नेता बनाना चाहते हैं। यूएसएड का दिशा-परिवर्तन इस मकसद को साधने की ओर अब तक का उनका सबसे बड़ा कदम है।
अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय विकास सहायता एजेंसी (यूएसएड) की फंडिंग रोकने के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के फैसले से देश के कूटनीतिक और लिबरल हलकों में मची बेचैनी को समझा जा सकता है। डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता तो इस पर विरोध जताने के लिए सड़कों पर तक उतरे हैं। इस एजेंसी का गठन छह दशक पहले तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी ने किया था। तब अमेरिका के सामने कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रभाव का मुकाबला करने की चुनौती थी। उसी क्रम में पश्चिम- खासकर अमेरिका और उसके पूंजीवादी सिस्टम का मानवीय चेहरा पेश करने के लिए ये पहल की गई। निर्विवाद है कि इस एजेंसी ने दुनिया में अमेरिका का सॉफ्ट पॉवर बनाने तथा अमेरिका के दूरगामी मकसदों को बिना सैनिक हस्तक्षेप के आगे बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इसके जरिए मीडिया, एनजीओ, थिंक टैंक आदि को अरबों डॉलर हर साल दिए जाते रहे हैं।
एनजीओ और थिंक टैंक उससे विभिन्न देशों में अपना नेटवर्क फैलाने में सक्षम होते रहे हैँ। मीडिया में जिन बड़े नामों को इस एजेंसी से पैसा मिला है, उनमें अमेरिका के बड़े अखबार एवं वेबसाइट्स के अलावा बीबीसी जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रसारण संस्थान शामिल हैं। वैसे ट्रंप प्रशासन का इरादा यूएसएड को बंद करने का नहीं है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह इसकी कार्य-दिशा में परिवर्तन करेगा। ट्रंप खेमे का आरोप है कि अब तक इसके जरिए दुनिया में लिबरल- लेफ्ट एजेंडे को आगे बढ़ाया गया है। लेकिन अब कंजरवेटिव एजेंडे को प्रचारित- प्रसारित करने में एजेंसी अपने संसाधन लगाएगी।
इस स्पष्टीकरण के बाद अमेरिका के रक्षा एवं सैन्य एस्टैबलिशमेंट की चिंताएं दूर हुई हैँ। लेकिन देश के लिबरल खेमे में नाराजगी जारी है, हालांकि फिलहाल यह खेमा कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं है। न्यायिक चुनौतियों से ट्रंप को रोकने का यथासंभव प्रयास वह कर रहा है, मगर इसमें कामयाबी की कम ही गुंजाइश है। ट्रंप अब पहले जैसे सॉफ्ट पॉवर की जरूरत महसूस नहीं करते। इसके विपरीत वे अमेरिका को धुर दक्षिणपंथ- रूढ़िवाद का वैश्विक नेता बनाना चाहते हैं। यूएसएड का दिशा-परिवर्तन इस मकसद को साधने की दिशा में अब तक का उनका सबसे बड़ा कदम है।