बात टिप्पणियों की हो, या ठोस कदमों की- ट्रंप ने भारत के प्रति कोई नरमी नहीं दिखाई है। ऐसे में ‘इंडिया फर्स्ट’ और ट्रंप शासन के बीच बराबरी के स्तर पर तालमेल कैसे बन सकता है, यह लाख टके का सवाल है।
प्रधानमंत्री ने पॉडकास्टर लेक्स फ्रीडमैन से कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से उनके लगाव का आधार यह है कि वो दोनों अपने-अपने राष्ट्रों को सर्वोपरि रखते हैं। उन्होंने ‘अमेरिका फर्स्ट’ के प्रति ट्रंप की प्रतिबद्धता की दिल खोल कर तारीफ की और जोड़ा कि ‘मैं भी अपने राष्ट्र को सर्वोपरि रखने में यकीन करता हूं’। यूरोप से लेकर उत्तर अमेरिका एवं एशिया के विकसित देशों से लेकर विकासशील दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में नरेंद्र मोदी की इस टिप्पणी को संभवतः कौतुक-भरी प्रतिक्रिया के साथ सुना गया होगा।
इसलिए कि ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति से यूरोप से लेकर कनाडा, मेक्सिको और दक्षिण कोरिया तक में पुराने सहयोग टूटने की आशंका छायी हुई है। ग्लोबल साउथ के जिन हिस्सों पर ट्रंप का डंडा पड़ा है, वहां व्यग्रता का माहौल है। वैसे भारत भी उनकी नीतियों के प्रभाव से बचा हुआ नहीं है। भारतीय कारोबार जगत के एक-एक हिस्से में अमेरिकी बाजार में टैरिफ की खड़ी हो रही बाधाओं से जैसी चुनौती आ खड़ी हुई है, उससे वहां फैली बेचैनी की झलक रोज मीडिया की सुर्खियों में देखने को मिलती है। यह स्पष्ट हो चुका है कि ट्रंप के नजरिए में दोस्त, सहयोगी, प्रतिस्पर्धी और दुश्मन के बीच ज्यादा फर्क नहीं है। उनका पैमाना है कि किससे ‘अमेरिका फर्स्ट’ के लिए कितना फायदा मिल सकता है।
उनकी शैली का दूसरा प्रमुख जाहिर हुआ पहलू है कि वे शक्ति का सम्मान करते हैं। उनकी नजर में जिसके पास ताकत है, उससे वे विशेष ढंग से पेश आ रहे हैं। जो इस श्रेणी में नहीं आते, उनके लिए उनका संदेश है कि ‘अमेरिका फर्स्ट’ के अनुरूप ढल जाओ अथवा अमेरिकी ताकत को भुगतने के लिए तैयार रहो! ऐसा नहीं लगता कि वे भारत को शक्तिशाली देशों की श्रेणी में गिनते हैं। बात टिप्पणियों की हो, या ठोस कदमों की- उन्होंने भारत के प्रति कोई नरमी नहीं दिखाई है। ऐसे में ‘इंडिया फर्स्ट’ और ट्रंप शासन के बीच बराबरी के स्तर पर तालमेल कैसे बन सकता है, यह लाख टके का सवाल है। तो क्या मोदी भी शक्ति के अनुरूप सम्मान और अपमान का नजरिया रखते हैं?