डब्लूटीओ का आकलन है कि व्यापार युद्ध लंबा खिंचने की संभावना के कारण दुनिया दो गुटों में बंट रही है। एक समूह उन देशों का है, जो अमेरिका से व्यापार संबंध रखेंगे। दूसरे गुट में वे देश हैं, जो चीन से नाता रखेंगे।
दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं- अमेरिका और चीन का संबंध विच्छेद अब हकीकत है। इससे विश्व व्यापार के दो धुरियों में बंट जाने की स्थिति बन गई है। इसकी मार उन दोनों पर भी पड़ेगी, लेकिन पीड़ा सारी दुनिया को झेलनी होगी। विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के विश्व व्यापार संबंधी ताजा आकलन का यही निष्कर्ष है।
इसमें कहा गया है- व्यापार युद्ध के लंबा खिंचने की संभावना के कारण दुनिया दो व्यापार गुटों में बंट रही है। एक समूह उन देशों का है, जो अमेरिका से व्यापार संबंध रखेंगे और दूसरे गुट में वे देश हैं, जो चीन से नाता रखेंगे।
अमेरिका-चीन व्यापार गिरावट: भारत की चुनौती
मौजूदा हालात कायम रहे, तो अमेरिका और चीन के बीच व्यापार में 80 प्रतिशत गिरावट आने की आशंका है। अमेरिका ने अभी 90 दिन के लिए स्थगित जैसे को तैसा टैरिफ को बहाल कर दिया, तो यह गिरावट 90 फीसदी तक पहुंच जाएगी। डब्लूटीओ की महानिदेशक ओकोंजो इवीला ने कहा- ‘ये वह परिघटना है, जिसकी चर्चा हम पहले भी कर चुके हैं।
मगर अब ये स्थिति हमारे सामने है। मेरी राय में सबसे चिंताजनक सूरत हमारे सामने आ खड़ी हुई है।’ जाहिर है, यह बिल्कुल नई परिस्थिति है। शीत युद्ध के समय विश्व व्यापार अवश्य सोवियत खेमे और बाकी दुनिया के बीच बंटा हुआ था। लेकिन सोवियत खेमे की कभी वैसी आर्थिक एवं व्यापारिक हैसियत नहीं थी, जैसी आज चीन की है।
फिर तब गहरे जुड़ाव के बाद संबंध विच्छेद नहीं हुआ था। इसलिए ताजा घटनाक्रम का झटका अधिक जोरदार है। सबसे ज्यादा यह निर्यात- केंद्रित अर्थव्यवस्था पर निर्भर देशों को महसूस होने वाला है, जबकि जहां घरेलू उपभोग बाजार मजबूत एवं विस्तृत है, वे नए हालात का मुकाबला करने की बेहतर स्थिति में होंगे।
भारत के पास अपेक्षाकृत बड़ा बाजार है, लेकिन इसे लगातार विस्तृत और गहरा बनाने पर ध्यान नहीं दिया गया। नतीजा, निर्यात में गिरावट को घरेलू उपभोग से संभाल लेने की गुंजाइश फिलहाल कम है। मगर, यहां से नई शुरुआत की जा सकती है। आम आबादी की आय बढ़ाते हुए उपभोग का बाजार फैलाना ही फिलहाल एकमात्र विकल्प बचा है। उस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए।
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