UN Climate Conference: बंटती हुई दुनिया में एकध्रुवीयता के जमाने में बनी सहमतियां वैसे भी अपनी अहमियत खो रही हैं। जलवायु सम्मेलन की प्रक्रिया उसी दौर में शुरू हुई थी। तो कुल मिला कर, जैसा अंदेशा था, बाकू सम्मेलन रस्म-अदायगी का मौका बन कर रह गया।
also read: चन्नापटना सीट के हवाले शिवकुमार की राजनीति
संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के मुद्दे
अजरबैजान के बाकू में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (कॉप-29) में कार्बन गैसों का उत्सर्जन रोकने का मुद्दा निष्प्रभावी ही बना रहा।
सारी बात जलवायु परिवर्तन से एडजस्ट करते हुए नुकसान को यथासंभव सीमित रखने पर टिकी रही। यह मसला भी इस पर अटका रहा कि इसकी लागत की कितनी भरपाई धनी देश करेंगे, जो ऐतिहासिक रूप से जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। विकासशील देशों ने इसके लिए लगभग डेढ़ ट्रिलियन डॉलर की मांग की।
2009 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 100 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष के योगदान की घोषणा की थी। वह जलवायु कोष बन गया होता, तो धनी देश अब तक इतनी रकम का योगदान कर चुके होते। लेकिन वो कोष कभी अस्तित्व में नहीं आया।
बाकू में लंबी जद्दोजहद के बाद धनी देश 2035 तक 300 बिलियन हर साल योगदान करने के लक्ष्य पर सहमत हुए। अब दस साल बाद क्या स्थिति बनेगी, ये किसे मालूम है! फिर ये वादा वो देश निभाएंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
जबकि अनिवार्यता तत्काल कदम उठाने की है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणाम अब हम सबके सामने हैं।
बाकू सम्मेलन रस्म-अदायगी का मौका
धनी देश अपनी इस दलील पर अब भी अड़े हुए हैं कि इस कोष में विकासशील देश भी योगदान करें। जाहिर है, पैसा ना देने का एक बहाना उन्होंने तैयार कर रखा है!
वैसे भी ये पूरा सम्मेलन डॉनल्ड ट्रंप के फिर से अमेरिकी राष्ट्रपति निर्वाचित होने से गहराई आशंकाओं के साये में हुआ। 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने अमेरिका को जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए हुई पेरिस संधि से बाहर निकाल लिया था। उनका फिर उनका ऐसा ही करने का इरादा है। (UN Climate Conference)
दरअसल, वे मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन की हकीकत को ही स्वीकार नहीं करते, तो फिर इस पूरी प्रक्रिया में कैसे योगदान करेंगे! दुनिया में इस समय ट्रंप जैसे नेताओं का दौर है।
फिर बंटती हुई दुनिया में एकध्रुवीयता के जमाने में बनी सहमतियां वैसे भी अपनी अहमियत खो रही हैं। कॉप की प्रक्रिया उसी दौर में शुरू हुई थी। तो कुल मिला कर, जैसा कि अंदेशा था, बाकू सम्मेलन रस्म-अदायगी का मौका बन कर रह गया।