“आत्म-सम्मान” की सारी भावना अमेरिका का संदर्भ आते ही कहीं हवा हो जाती है। जबकि अब तक यह गहरा अहसास हो चुका है कि अमेरिका से बीटीए के लिए चल रही वार्ता में देश के बुनियादी हित भी दांव पर लग गए हैँ।
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने दो टूक कहा है कि “यूरोपियन यूनियन (ईयू) द्विपक्षीय वार्ता में गैर-व्यापार एजेंडा थोपना नहीं छोड़ता, तो आत्म-सम्मान रखने वाला कोई देश उससे मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) नहीं कर सकता।” यह बयान संकेत है कि ईयू के साथ एफटीए की भारत की वार्ता में कार्बन टैक्स एवं वन संरक्षण विनियमन जैसे गैर-व्यापार मुद्दों को कांटा फंस गया है। जबकि अमेरिका में खड़ी हो रहीं ऊंची व्यापार दीवारों के मद्देनजर ईयू, ब्रिटेन, आसियान, ऑस्ट्रेलिया आदि के साथ प्रस्तावित एफटीए से भारत ने बड़ी उम्मीद जोड़ी हुई है। दिलचस्प है कि गोयल ने ईयू के मामले में “आत्म- सम्मान” का प्रश्न उठाया है। इससे उन देशवासियों को तसल्ली मिलेगी, जो भारत को दुनिया में फख्र के साथ खड़ा देखना चाहते हैं।
मगर विडंबना यह है कि “आत्म- सम्मान” की सारी भावना अमेरिका का संदर्भ आते ही कहीं हवा हो जाती है। जबकि अब तक भारतीय विशेषज्ञ दायरे में यह गहरा अहसास हो चुका है कि अमेरिका से द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) के लिए चल रही वार्ता में “आत्म- सम्मान” की बात दूर रही, देश के बुनियादी हित भी दांव पर लग गए हैँ।
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नई दिल्ली स्थित संस्था- ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने अपने ताजा आकलन में सलाह दी है कि भारत को इस वार्ता में बने रहने को लेकर पुनर्विचार करना चाहिए। इसलिए कि अमेरिकी शर्तें मानने का मतलब भारत की खाद्य सुरक्षा, औषधि उद्योग, ई-कॉमर्स विनियमन, और सेवा क्षेत्र संबंधी राष्ट्रीय नियमों को तिलांजलि देना होगा।
जीटीआरआई के साथ-साथ अनेक व्यापार एवं आर्थिक विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत को बीटीए में अधिकतम रियायत 90 फीसदी तक अमेरिकी औद्योगिक आयात पर भारत में शून्य शुल्क का देना चाहिए। साथ ही भारत को नए बाजार तलाशने के प्रयास करने चाहिए। मगर ईयू के साथ वार्ता में हुए अनुभव से स्पष्ट है कि यह रास्ता भी आसान नहीं है। तो एकमात्र उपाय यह बचता है कि भारत अपने घरेलू बाजार के विस्तार की ठोस योजना पर काम करे। यह श्रम-साध्य रास्ता है, लेकिन इसका कोई बेहतर विकल्प नहीं है। दरअसल, वो देश ही ‘आत्म-सम्मान’ से जी सकता है, जिसके पास अपनी ताकत हो।
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