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07-04-2025 Vol 19

आईने में आधी तस्वीर

यह सच है कि भारतीय स्टार्ट-अप्स ने उथल-पुथल मचा देने वाले आविष्कार का जज्बा नहीं दिखाया है। इसीलिए अब उनके लिए फंड का टोटा पड़ने लगा है। मगर उनकी तुलना चीन के स्टार्ट-अप्स से करना उचित नहीं है।

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भारत के स्टार्ट-अप निर्माताओं और उनके निवेशकों को आईना दिखाया। सालाना स्टार्ट-अप्स महाकुंभ को संबोधित करते हुए पूछा की आखिर वे बना क्या रहे हैं? कहा कि वे डिलीवरी ऐप्स जैसी निम्न मजदूरी आधारित और धनी लोगों की जिंदगी आसान करने वाली सेवाएं या ‘हेल्दी आईसक्रीम’ जैसे भ्रामक उत्पाद तैयार कर रहे हैं। इसकी तुलना उन्होंने चीन के स्टार्ट-अप्स से की, जो एआई, रोबोटिक्स, इलेक्ट्रिक बैटरी जैसी आधुनिक तकनीक से जुड़े उत्पाद बना रहे हैं। इस पर स्टार्ट-अप्स निर्माता और निवेशक भड़के। उन्होंने उलटे राजनेताओं को आईना दिखाया।

सोशल मीडिया का सहारा लेकर पूछा कि आखिर सरकार ने कितनी नौकरियां पैदा की हैं या स्टार्ट-अप्स में उनका योगदान क्या है? तो इस तीखी चर्चा का सार क्या है? दरअसल, दोनों पक्षों के आईने में उभरे अक्स में सच्चाई है। मगर वे आधा सच हैं। भारतीय स्टार्ट-अप्स ने उथल-पुथल मचा देने वाले आविष्कार का जज्बा नहीं दिखाया है। यही कारण है कि अब उनके लिए फंड का टोटा पड़ने लगा है। मगर उनकी तुलना चीन के स्टार्ट-अप्स से करना उचित नहीं है। चीन के स्टार्ट-अप्स सरकार की व्यापक परियोजना और प्राथमिकता के अनुरूप काम करते हैं। उनके लिए पब्लिक बैंकिंग से धन मुहैया कराया जाता है। वे फेल होते हैं, तो उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। एक डीपसीक (एआई ऐप जिसने दुनिया में हलचल मचाई) कई नाकामियों के बाद सामने आता है।

भारत में नियोजन-मुक्त अर्थव्यवस्था अपनाई गई है, जिसमें सब कुछ निजी पहल पर निर्भर है। फिर 1991 के बाद अर्थव्यवस्था का उपभोग संचालित स्वरूप आगे बढ़ा है, जबकि चीन की अर्थव्यवस्था निवेश संचालित है। इसलिए गोयल ने जो कहा वह सच होने के बावजूद पूरा सच नहीं है। उधर स्टार्ट-अप निर्माताओं और निवेशकों ने सरकार से जो सवाल पूछे, वे प्रासंगिक होने के बावजूद पूरी तस्वीर की झलक नहीं देते। उन सबसे प्रश्न यह है कि क्या भारत की कोई सरकार नियोजित अर्थव्यवस्था की तरफ लौटने की कोशिश करे, तो वे उसका समर्थन करेंगे? इसलिए दोनों पक्षों को यह समझना चाहिए कि जो मॉडल हमने अपनाया है, उसमें जो संभव है, वो हो रहा है।

NI Editorial

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