nirmala sitharaman: वित्त मंत्रालय ने कहा है कि भू-राजनीतिक तनावों, व्यापार नीति संबंधी अनिश्चितताओं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉमोडिटी के मूल्यों में उतार-चढ़ाव के कारण अगले वित्त वर्ष में भारत के आर्थिक विकास के लिए गंभीर जोखिम पैदा हो गए हैँ।
दुनिया में मची उथल-पुथल से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी प्रतिकूल हालात बने हैं, उसका अहसास अब भारत सरकार को भी हुआ है।
लगातार ‘मजबूत आर्थिक बुनियाद’ के दावे को आगे बढ़ाते रहे वित्त मंत्रालय ने अब कहा है कि भू-राजनीतिक तनावों, व्यापार नीति संबंधी अनिश्चितताओं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉमोडिटी के मूल्यों में उतार-चढ़ाव के कारण अगले वित्त वर्ष में भारत के आर्थिक विकास के लिए गंभीर जोखिम पैदा हो गए हैँ। (nirmala sitharaman)
अपनी मासिक आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में मंत्रालय ने कहा है कि शुल्क संबंधी नीतिगत घटनाओं ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए जोखिम और बढ़ा दिया है, जिसका असर निवेश पर भी पड़ रहा है।
जाहिर है, मंत्रालय का इशारा अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर की तरफ है, जिसमें अगले दो अप्रैल को नया आयाम जुड़ेगा, जब ट्रंप जैसा को तैसा टैरिफ प्रणाली लागू करेंगे।
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भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चेतावनी, वित्त मंत्रालय ने दी सलाह (nirmala sitharaman)
उसकी खास मार भारत पर पड़ सकती है। वित्त मंत्रालय ने मौजूदा हालात के बीच विभिन्न देशों में बने संदेह और हताशा के माहौल का उल्लेख किया है और भारतीय कारोबारियों को सलाह दी है कि वे वैसी भावनाओं से प्रभावित होने से बचें।
मगर कैसे, यह सवाल सबके मन में उठेगा। नई परिस्थितियों में यह अहसास अधिक गहराई से होने लगा है कि सब कुछ हरा-भरा होने और नई सदी भारत की होने के बनावटी कथानकों में फंसे रहना अब कितनी बड़ी मुश्किल का कारण बन गया है।
भू-राजनीतिक स्थितियां कोरोना काल के बाद से बिगड़ने लगी थीं। अमेरिका में उभर रही राजनीतिक स्थितियों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में गंभीर चुनौतियों के अंदेशे काफी पहले जाहिर होने लगे थे। (nirmala sitharaman)
इन सबके बीच यह सोच अपने-आप में समस्याग्रस्त थी (या अभी भी है) कि भारतीय अर्थव्यवस्था इन सबसे बेदाग बच निकलेगी। इन्हीं भ्रमों के कारण जब स्थितियां अपेक्षाकृत अनुकूल थीं, तब ऐहतियाती उपायों की जरूरत नहीं समझी गई।
अब झंझावात में भारत फंस गया है, तब जाकर असलियत का अहसास हुआ है। मगर चीजें अब बहुत कुछ अपने हाथ में नहीं रह गई हैं। बहरहाल, सरकार और कारोबार जगत अब से भी हकीकत का सामना करने को तैयार हों, तो सुधार के रास्ते ढूंढे जा सकते हैं। (nirmala sitharaman)
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