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14-03-2025 Vol 19

शांति की संभावना कम

जब सऊदी अरब में अमेरिका और रूस के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडलों के वार्ता हुई थी, तो उस समय रूस ने साफ कहा था कि वह युद्धविराम नहीं, बल्कि शांति का संपूर्ण समझौता चाहता है, जिसमें उसके सुरक्षा हितों की गारंटी हो।

अमेरिका ने यूक्रेन को युद्धविराम पर राजी करने के बाद कहा कि ‘गेंद अब रूस के पाले में है’। यूरोपीय नेताओं ने भी सऊदी अरब में हुई अमेरिका-यूक्रेन वार्ता के नतीजों का स्वागत करते हुए यही बात दोहराई है। राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की के युद्धविराम पर राजी होने से प्रसन्न डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन के लिए सैनिक मदद फिर शुरू कर दी है। बहरहाल, जेलेन्स्की के बदले ताजा रुख से सचमुच लड़ाई रुकने की संभावना कम ही है। इसलिए कि इसके पहले जब सऊदी अरब में ही अमेरिका और रूस के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडलों के वार्ता हुई थी, तो उस समय रूस ने साफ कहा था कि वह युद्धविराम नहीं, बल्कि शांति का संपूर्ण समझौता चाहता है, जिसमें उसके सुरक्षा हितों की गारंटी हो।

इसका अर्थ है कि पहले उन कारणों को दूर करने पर सहमति बने, जिनकी वजह से युद्ध हुआ। इनमें नाटो में यूक्रेन की सदस्यता सर्व-प्रमुख है। रूस के नजरिए में सिर्फ युद्धविराम से यूक्रेन को हथियार जुटाने और अगली लड़ाई के लिए पुनर्संगठित होने का मौका मिलेगा, जिसे वह नहीं देना चाहता। ऐसी सूरत में लड़ाई रुकने की संभावना तभी बनेगी, अगर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप व्यक्तिगत रूप से 30 दिन के युद्धविराम के अंदर संपूर्ण शांति समझौता का भरोसा रूस को दिलाएं। उनके प्रशासन ने हथियारों की सप्लाई दोबारा शुरू कर यह काम ज्यादा कठिन बना दिया है।

अमेरिका- यूक्रेन की वार्ता के बाद रूसी राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि प्रस्तावित संघर्ष-विराम उन्हें मंजूर है या नहीं, इस पर टिप्पणी करने से पहले उन्हें इस बारे में अमेरिका से जानकारी मिलना जरूरी है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और ट्रंप के बीच फोन कॉल की संभावना पर उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर इसकी बहुत जल्द व्यवस्था की जा सकती है। यानी रूस को अपेक्षा है कि वार्ता के परिणामों की जानकारी खुद ट्रंप पुतिन को देंगे। इस बीच रूस ने क्रुस्क क्षेत्र में यूक्रेनी बलों पर बड़ी सफलता पाई है। पुतिन वहां सैनिक परिधान पहन कर गए, जिसे भी रूस की ओर से दिए गए एक संदेश के रूप मे देखा गया है।

NI Editorial

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