Wednesday

12-03-2025 Vol 19

चर्चा में क्या हर्ज़?

मतदाता सूची से जुड़ी शिकायतों को विपक्ष उठा रहा है, तो उस पर संसद में उसे अपनी बात कहने और उस पर सरकार का जवाब सुनने के अवसर से देश को वंचित नहीं किया जाना चाहिए। चर्चा से स्थिति ज्यादा साफ होगी।

संसद में विपक्ष ने मतदाता सूचियों में कथित गड़बड़ी के मुद्दे पर बहस की मांग की है, तो यह उचित होगा कि सरकार इसे स्वीकार कर ले। उसे ध्यान देना चाहिए कि यह शिकायत किसी पार्टी विशेष की नहीं है। बल्कि लगभग पूरे विपक्ष में मतदाता सूचियों को लेकर संदेह गहराता गया है। आम तौर पर भाजपा सरकार के प्रति नरम रुख रखने वाले ओडीशा के बीजू जनता दल ने भी उपरोक्त मांग में अपनी आवाज जोड़ी, तो समझा जा सकता है, यह मसला किस हद तक भारतीय लोकतंत्र में भरोसे की जड़ों पर प्रहार कर रहा है। अब यह हर चुनाव की कहानी बन गई है, जब संबंधित विपक्षी दल ऐसी शिकायतों को उठाता है।

यह भी स्पष्ट कर लेना चाहिए कि इस प्रकरण में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों से संबंधित प्रश्न शामिल नहीं हैं। यहां मुद्दा सिर्फ इस शिकायत का है कि मतदाता सूची से बड़ी संख्या में ऐसे मतदाताओं के नाम बाहर कर दिए जाते हैं, जिनसे सत्ताधारी पार्टी को वोट मिलने की संभावना कम रहती है। कुछ राज्यों में फर्जी नामों को वोटर लिस्ट में शामिल करने की शिकायत भी विपक्ष ने की है। एक एपिक नंबर पर अनेक जगह मतदाता के नाम होने संबंधी गड़बड़ी को तो खुद निर्वाचन आयोग ने मान लिया है। नतीजतन विपक्ष के मन में संदेह और गहराया है।

इसके अलावा कई राज्यों में एक समुदाय विशेष के मतदाताओं को पुलिस बल के इस्तेमाल से मतदान से रोकने संबंधी शिकायतें भी चर्चित रही हैं। मुमकिन है, ऐसी शिकायतों में सच्चाई ना हो। इसके बावजूद विपक्षी दल इस मसले को उठा रहे हैं, तो उस पर संसद में उन्हें अपनी बात कहने और उस पर सरकार का जवाब सुनने के अवसर से देश को वंचित नहीं किया जाना चाहिए। अपेक्षित यह है कि ऐसी चर्चा से स्थिति ज्यादा साफ होगी। दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद लोग अपने विवेक से इस बारे में राय बनाने की बेहतर स्थिति में होंगे। जबकि चर्चा रोकने से संदेह और गहराएगा। इससे भारतीय चुनाव प्रक्रिया की साख और प्रभावित होगी। आशा है, सरकार इस मुद्दे की गंभीरता को समझेगी।

NI Editorial

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