Wednesday

23-04-2025 Vol 19

फिर एक नई नीति!

जब तक मैन्युफैक्चरिंग का समग्र ढांचा नहीं बनता, ऊपर से लागू योजनाओं को सीमित कामयाबी ही मिल सकती है। मैन्युफैक्चरिंग का व्यापक ढांचा बनने के लिए फूलते-फलते एमएसएमई सेक्टर की जरूरत है, जबकि इसी क्षेत्र की कमर टूटी हुई है।

खबर है कि सरकार नई मैन्युफैक्चरिंग नीति घोषित करने वाली है। यह स्वीकारोक्ति है कि पहले घोषित नीतियां अपने लक्ष्य हासिल नहीं कर सकीं। उनमें बहु-प्रचारित मेक इन इंडिया और प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) स्कीम भी शामिल हैं। एक अखबार ने सरकारी अधिकारियों के हवाले से बताया है कि नई नीति का मुख्य लक्ष्य रोजगार पैदा करना होगा।

इसके जरिए निजी क्षेत्र को पूंजीगत निवेश के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा। साथ ही इसमें व्यापार युद्ध और दुनिया भर में संरक्षणवादी नीतियों के आए नए दौर को ध्यान में रखा जाएगा। उल्लेखनीय है कि मेक इन इंडिया और पीएलआई जैसी योजनाओं में जोर जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग के योगदान को बढ़ाना था।

मगर हुआ उलटा। इस कारण सरकार ने पीएलआई में बड़ा बदलाव लाने का संकेत दिया है। पिछले हफ्ते ही सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स पाट-पुर्जों का उत्पादन बढ़ाने के लिए 2.68 बिलिडन डॉलर की प्रोत्साहन योजना पेश की। जिन क्षेत्रों में परिणाम अच्छे नहीं रहे, वहां इस स्कीम की अवधि आगे ना बढ़ाने का मन बनाया गया है।

मैन्युफैक्चरिंग नीति की चुनौतियां और भविष्य

इस वर्ष के लिए पेश बजट में नेशनल मैन्युफैक्चरिंग मिशन शुरू करने का एलान किया गया था। नई नीति संभवतः उसका ही हिस्सा होगी। मगर इसके सामने चुनौतियां कम नहीं हैं। हकीकत यह है कि जब तक समग्र रूप से मैन्युफैक्चरिंग का ढांचा नहीं बनता, ऊपर से लागू योजनाओं को सीमित कामयाबी ही मिल सकती है।

मैन्युफैक्चरिंग का व्यापक ढांचा बनने के लिए फूलते-फलते एमएसएमई सेक्टर की जरूरत है, जबकि इसी क्षेत्र की कमर टूटी हुई है। सरकार की प्रोत्साहन योजनाओं का ध्यान जिन हाई टेक क्षेत्रों पर रहा है, वहां जरूरत ऊंचे पूंजी निवेश तथा कुशल कर्मियों की उपलब्धता की है।

साथ ही सवाल वैसे उत्पादों की मांग का है। चूंकि देश के अंदर इन पहलुओं का अभाव है, तो स्वाभाविक रूप से सारा ध्यान निर्यात पर टिक जाता है। मगर नई परिस्थितियों में उस रास्ते में भी कांटे पड़ गए हैं। इसलिए पहली जरूरत इस सारे परिदृश्य पर नजर डालने की है। इसके मद्देनजर शुरुआत जड़ से करनी होगी। चूंकि ऐसा होने के संकेत नहीं हैं, इसलिए हर नई नीति नए सवाल लिये आती है।

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Pic Credit : ANI

NI Editorial

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