nagpur violence : सही नजरिया है इतिहास को याद रखना और उससे सबक लेते हुए आगे बढ़ना। कोई भी प्रगतिशील समाज इतिहास में सिमट कर नहीं रह जाता। स्मारकों से इतिहास का बदला लेना सिर्फ वहीं संभव है, जहां भविष्य का कोई सपना ना हो।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने नागपुर में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जिम्मेदारी फिल्म छावा पर डाल दी है। वैसे उन्होंने फिल्म की यह कहते हुए तारीफ की इसने औरंगजेब के अत्याचारों का सजीव चित्रण किया है, लेकिन जोड़ा कि इससे लोग उत्तेजित हो गए हैं।
इस तरह उन्होंने उत्तेजना का माहौल बनाने में अपनी सरकार के मंत्रियों और सत्ताधारी जमात के कई संगठनों की भूमिका पर परदा डालने की कोशिश की। वैसे, इस सिलसिले में खुद मुख्यमंत्री की कुछ बातें कम विवादास्पद नहीं रही हैं। (nagpur violence)
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हिंसा पूर्व-नियोजित थी (nagpur violence)
बहरहाल, फड़णवीस ने यह भी कहा कि हिंसा पूर्व-नियोजित थी। ऐसा था, उनकी सरकार के खुफिया तंत्र को इसकी भनक क्यों नहीं लगी या सूचना के होने के बाद भी प्रशासन ने एहतियाती कदम क्यों नहीं उठाए?
राज्य के लोग उत्तेजित हैं, तो उन्हें सही नजरिया देकर शांत और संयमित करने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? औरंगजेब ने जो कुछ किया, वह इतिहास में दर्ज है। (nagpur violence)
उसकी कब्र खोद डालने से इतिहास के उस अध्याय को मिटाया नहीं जा सकता। सही नजरिया होता है इतिहास को याद रखना और उससे सबक लेते हुए आगे बढ़ना।
कोई भी प्रगतिशील समाज इतिहास में सिमट कर नहीं रह जाता। हिटलर ने लाखों यहूदियों को संहार शिविरों में डाल कर मार डाला था। यूरोपीय देशों ने उन शिविरों के निशान मिटाने की कोशिश नहीं की है।
बल्कि उन्हें सहेज कर रखा है, ताकि आने वाली पीढ़ियां जान सकें कि इतिहास में वो भयानक दौर भी आया था- और संभव हो, तो उसका दोहराव रोकने के लिए वे सचेत रहें। (nagpur violence)
कब्र या स्मारकों से ऐतिहासिक घटनाओं का बदला लेना सिर्फ उसी समाज में संभव है, जहां भविष्य का कोई सपना नहीं हो। यह मुद्दा है कि औरंगजेब की कब्र खोद डालने से आज के मसले कैसे हल हो जाएंगे या उससे भारत का भविष्य कैसे संवर जाएगा?
समाज को ऐसी समझ देना उन नेताओं का दायित्व ही है, जिन्हें लोगों अपनी रहबरी सौंपी है। इसके विपरीत आचरण करना खुद को इतिहास के कठघरे में खड़ा करने की तैयारी करना होगा। अतः नागपुर के जख्म पर तुरंत मरहम लगाने की जरूरत है।