Wednesday

02-04-2025 Vol 19

सियासी रुख की जरूरत

Kishan andolan: संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) ने चार जनवरी को किसान पंचायत बुलाई है। पंचायत के लिए बुद्धिमानी का फैसला होगा कि वो दल्लेवाल से अनशन खत्म करने का आग्रह करे। ऐसी लड़ाइयां ठोस वैचारिक समझ और व्यावहारिक रणनीति से लड़ी जाती हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने 34 दिन का अनशन पूरा कर चुके किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल की जान बचाने की पूरी जिम्मेदारी पंजाब सरकार पर डाल दी है।

जबकि दल्लेवाल के नेतृत्व वाले संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) की मांगें केंद्र से हैं। ये समूह भी कह चुका है कि केंद्र का हस्तक्षेप ही 70 वर्षीय किसान नेता की जान बचा सकता है।

ऐसे मामलों में किसी राज्य सरकार का लाचार दिखना अस्वाभाविक नहीं है। दरअसल, मांग मनवाने के लिए जान देने की रणनीति अपनाना अपने-आप में कम समस्याग्रस्त नहीं है।

स्वामीनाथन फॉर्मूले के मुताबिक एमएसपी लागू करवाने की किसानों की मांग का अंतर्विरोध वर्तमान राजनीतिक-अर्थव्यवस्था से है, इसलिए इसे इस ढांचे से प्रभावित विभिन्न वर्गों की एकता कायम करते हुए व्यापक संघर्ष से ही हासिल किया जा सकता है।

किसान आंदोलन में फूट पड़ी(Kishan andolan)

इसे व्यक्तिगत बलिदान या सरकार पर नैतिक दबाव बना कर हासिल करने की सोच कमजोर जमीन पर टिकी है।

ऐसी हो सोच के तहत अराजनीतिक गुट ने संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से खुद को अलग कर एकतरफा ढंग से लड़ाई छेड़ी।

उसने एसकेएम नेतृत्व पर आरोप लगाया कि सिर्फ किसानों की लड़ाई लड़ने के बजाय वह “राजनीति” कर रहा है। मगर इस क्रम में किसान आंदोलन में फूट पड़ी।

दल्लेवाल को जबरन अस्पताल ले जाना

अराजनीतिक गुट सीमित समर्थन और छोटी शक्ति के साथ खड़ा है। ऐसे में उसकी मांगों को नजरअंदाज करना सरकार के लिए और भी आसान है। केंद्र यही कर रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने अच्छी मंशा के साथ दखल दिया है, लेकिन दल्लेवाल को जबरन अस्पताल में भर्ती कराने के अलावा वह और क्या आदेश दे सकता है?

नीतिगत मामलों पर सरकार को आदेश देना तो उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। अनशन स्थल पर जिस तरह किसानों का जमावड़ा है, उसे देखते हुए दल्लेवाल को जबरन अस्पताल ले जाना पंजाब सरकार के लिए आसान नहीं है।

अब अराजनीतिक गुट ने चार जनवरी को किसान पंचायत बुलाई है। यह पंचायत के लिए बुद्धिमानी का फैसला होगा कि वो दल्लेवाल से अनशन खत्म करने का आग्रह करे।

ऐसी लड़ाइयां ठोस वैचारिक समझ और व्यावहारिक रणनीति के जरिए लड़ी जाती हैं। हठ की रणनीति आत्म-हानि का सबब बनती है।

NI Editorial

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