judiciary supreme court : उप-राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या अदालतों को संविधान संशोधन विधेयकों की समीक्षा का अधिकार है? बेशक, संविधान में अलग से ऐसा अधिकार उल्लिखित नहीं है, मगर न्यायपालिका के ऐसे अधिकार को लेकर अब तक कोई भ्रम नहीं रहा है।
ऐसा लगता है कि दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर पर नकदी मिलने के मामले को सरकार अपने लिए एक अवसर मान रही है। इस घटना से न्यायपालिका में कथित भ्रष्ट जजों की मौजूदगी की बात चर्चित हुई है।
सत्ता पक्ष को इसमें संभवतः मौका यह नजर आया है कि इस माहौल में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के गठन संबंधी संविधान संशोधन के पक्ष में समर्थन जुटाया जा सकता है। (judiciary supreme court)
इस संविधान संशोधन बिल को 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। वैसे तो उप राष्ट्रपति संवैधानिक पद है और इस पर आसीन व्यक्ति से अपेक्षा रोजमर्रा की सियासत से दूर रहने की होती है, लेकिन आज के दौर में इस दूरी का अहसास घटता गया है।
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इस बारे में कोई दुविधा नहीं रही (judiciary supreme court)
इसीलिए जस्टिस वर्मा प्रकरण में जगदीप धनकड़ की टिप्पणियां एक सियासी रंग लिए हुई मालूम पड़ी हैं। उप राष्ट्रपति ने ना सिर्फ एनजेएसी की जरूरत पर विभिन्न पार्टियों के नेताओं के साथ बैठक शुरू की है, बल्कि उन्होंने यह सवाल भी उठा दिया है कि क्या अदालतों को संविधान संशोधन विधेयकों की समीक्षा का अधिकार है? (judiciary supreme court)
जबकि पहले इस बारे में कोई दुविधा नहीं रही। बेशक, भारतीय संविधान में अलग से ऐसी समीक्षा का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को नहीं दिया गया है, मगर अनुच्छेद 13, 32, 124, 136 और 142 के प्रावधानों की रोशनी में न्यायपालिका के ऐसे अधिकार को लेकर अब तक कोई भ्रम नहीं रहा है।
इसलिए इस संबंध में नए सिरे से बहस छेड़ने की कोई जरूरत महसूस नहीं होती। न्यायिक नियुक्ति के कॉलेजियम सिस्टम की उपयोगिता और नियुक्तियों में कार्यपालिका या विधायिका की भी भूमिका हो, इस बारे में बहस चलाई जा सकती है, मगर उसमें न्यायपालिका की राय भी महत्त्वपूर्ण होगी। (judiciary supreme court)
कई बातों की प्रासंगिकता उस समय के माहौल से तय होती है। आज के दौर में न्यायपालिका को नियंत्रित करने की सरकार की कथित कोशिशों को लेकर समाज के एक हिस्से में अंदेशे छाये हुए हैँ। इसलिए ऐसा शक पैदा करने वाले किसी प्रयास से बचा जाना चाहिए। अतः बेहतर होगा कि सरकार एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना को अपनी मंशा पूरी करने का अवसर ना बनाए।