education system: वर्ष 2023-24 के शैक्षणिक सत्र में देश में करीब 13 हजार ऐसे स्कूल थे, जहां एक भी छात्र ने दाखिला नहीं लिया, जबकि उन स्कूलों में करीब 32 हजार शिक्षक थे। दूसरी तरफ ऐसे स्कूल भी हैं, जहां सिर्फ एक शिक्षक है।
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‘विकसित भारत’ बनाने के जारी उद्घोष के बीच ये खबर अहम है कि 2023-24 के शैक्षणिक सत्र में देश में करीब 13 हजार ऐसे स्कूल थे, जहां एक भी छात्र ने दाखिला नहीं लिया, जबकि उन स्कूलों में करीब 32 हजार शिक्षक थे।
इनमें से करीब एक चौथाई स्कूल पश्चिम बंगाल में हैं। उसके बाद राजस्थान और तेलंगाना का नंबर है। पश्चिम बंगाल में तीन हजार से ज्यादा ऐसे सरकारी स्कूल हैं, जहां 2023-24 के दौरान एक भी छात्र भर्ती नहीं हुआ।
जबकि उन स्कूलों में 14 हजार से ज्यादा शिक्षक हैं। जाहिर है, ये शिक्षक बिना किसी काम के ही वेतन लेते रहे।
दूसरी ओर इस राज्य में छह हजार से ज्यादा ऐसे स्कूल हैं, जहां छात्र तो बड़ी संख्या में हैं, मगर हर स्कूल में सिर्फ एक शिक्षक है। उन स्कूलों में छात्रों की तादाद करीब ढाई लाख है।
पांच सौ सरकारी स्कूलों को बंद
वैसे यह कोई चौंकाने वाली खबर नहीं है। इसलिए कि विभिन्न राज्यों से पहले भी इस तरह के अजूबा और उपेक्षित स्कूलों के बारे में खबरें आती रही हैं।
खास बात सिर्फ नए आंकड़ों की है। ये तथ्य केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट से सामने आए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल में ये हाल तब है, जब कोरोना काल छात्रों की कमी के कारण करीब पांच सौ सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया गया था।
वैसे दूसरे राज्यों में भी हालात बेहतर नहीं हैं। गौरतलब है कि रिपोर्ट में बीच में ही पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की बढ़ती तादाद पर भी चिंता जताई गई है।
2023-24 के दौरान हाई स्कूल से पहले पढ़ाई छोड़ देने वाले छात्रों की तादाद 12.01 प्रतिशत पहुंच गई। इस मामले में पहले नंबर पर बिहार है।
तो ये रिपोर्ट भारत में जमीनी स्तर पर शिक्षा की बढ़ती बदहाली पर से परदा हटाती है। जब देश की बुनियाद ऐसी हो, तो उस पर कितना ‘विकसित’ महल खड़ा हो सकता है?
मगर इस मूलभूत प्रश्न पर बहस और चर्चा की देश में कम ही गुंजाइश है। इसलिए कि हमारे कर्ता-धर्ता हर मसले को सियासी तू तू-मैं मैं में समेट देते हैं। पश्चिम बंगाल भी यही होता दिख भी रहा है।