India alliance: लोकसभा चुनाव में जो नुकसान हुआ, अब ऐसा लगता है कि अपनी ध्रुवीकरण एवं समीकरण साधने की सियासत से भाजपा ने उसे काफी हद तक संभाल लिया है। इससे इंडिया गठबंधन के आगे अपनी भूमिका तय करने का गंभीर सवाल खड़ा हो गया है।
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इंडिया गठबंधन के सामने कठिन प्रश्न
इंडिया गठबंधन के सामने कठिन प्रश्न हैं। महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों से यह सवाल गहरा गया है कि क्या ये गठबंधन बनने के डेढ़ साल बाद भी अपना कोई साझा उद्देश्य तय कर पाया है?
हर चुनाव से पहले शामिल दलों के बीच सीटों को लेकर धींगामुश्ती, मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा पेश कर पाने के मुद्दे पर मतभेद और चुनाव अभियान में समन्वय का अभाव आम कहानी बन गया है।
गठबंधन बनने के बाद नवंबर- दिसंबर 2023 में जब पहले चुनाव हुए, तो दलों का मनमुटाव खुल कर जाहिर हुआ।
लोकसभा चुनाव में जरूर चीजें कुछ संभलती नजर आईं, लेकिन जैसे ही बात हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड की आई, पुरानी खींचतान उभर आई। किसी साझा न्यूनतम कार्यक्रम की जरूरत तो गठबंधन ने आरंभ से ही नहीं समझी।
नरेंद्र मोदी- अमित शाह से मुक्ति की चाहत के अलावा उनके बीच किसी मुद्दे और सहमति की तलाश करना कठिन बना रहा है। ऐसी नकारात्मक राजनीति कभी कारगर नहीं होती। (India alliance)
लोकसभा चुनाव में बिजली चमकने जैसी उम्मीद जगी, तो उसके पीछे भी उनके अपने प्रयासों का कम ही योगदान था।
अब ऐसा लगता है कि तब जो नुकसान हुआ, अपनी ध्रुवीकरण एवं समीकरण साधने की सियासत से भाजपा ने उसे काफी हद तक संभाल लिया है।
इंडिया गठबंधन यह संदेश देने में नाकाम
इसका बड़ा कारण यह है कि इंडिया गठबंधन यह संदेश देने में नाकाम है कि उसके पास देश के विकास एवं आम जन की बेहतरी का कोई बेहतर एजेंडा है। इसके अभाव में गठबंधन महज सीटों के तालमेल का माध्यम बन कर रह जाता है।
इस रूप में कुछ खास परिस्थितियों में यह प्रयास लाभदायक हो सकता है, लेकिन सत्ता पक्ष के लिए कोई गठबंधन कोई निर्णायक चुनौती पेश नहीं कर पाएगा। महाराष्ट्र का चुनाव नतीजा आने के बाद गठबंधन के अंदर की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस आलोचना के केंद्र में आई है, तो उसकी भी ठोस वजहें हैं।
बड़ी पार्टी होने का सिर्फ लाभ नहीं होता, बल्कि जिम्मेदारियां भी होती हैं, इसे अब भी कांग्रेस नेतृत्व नहीं समझ पाया, तो पार्टी की भूमिका पर सवाल गहराते जाएंगे। वैसे अपनी-अपनी भूमिका से जुड़ा सवाल गठबंधन में शामिल सभी दलों के सामने है।