Economy, विभिन्न कंपनियों की सालाना रिपोर्टों का निष्कर्ष है कि भारतीय कारोबार जगत में अब सबसे ज्यादा मुनाफा बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं, और बीमा क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियां कमा रही हैं। यह कहानी हाल के वर्षों में तिमाही दर तिमाही दोहराई गई है।
कॉरपोरेट सेक्टर के तीसरी तिमाही में रहे प्रदर्शन ने भारतीय Economy के उत्पादक स्वरूप में आई गिरावट को फिर स्पष्ट किया है। विभिन्न कंपनियों की सालाना रिपोर्टों का निष्कर्ष है कि भारतीय कारोबार जगत में अब सबसे ज्यादा मुनाफा बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं, और बीमा (बीएफएसआई) से जुड़ी कंपनियां कमा रही हैं। वैसे यह कहानी तिमाही दर तिमाही दोहराई जा रही है, मगर इस पर बात करते रहना कई कारणों से महत्त्वपूर्ण है। इन क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां उन वर्गों के बीच कारोबार करती हैं, जिनके पास पहले से पैसा है। इनमें ज्यादातर उन्हीं लोगों को रोजगार मिलता है, जो अपेक्षाकृत मजबूत पृष्ठभूमि से आते हैँ। आर्थिक शब्दावली में इस परिघटना को अर्थव्यवस्था का वित्तीयकरण कहा जाता है।
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यह आम अनुभव है कि Economy के इस स्वरूप में ढलने का परिणाम आर्थिक गैर-बराबरी बढ़ने और समाज के विषम विकास के रूप में सामने आता है। 2024 के जुलाई से सितंबर की तिमाही में भारत के कॉरपोरेट सेक्टर ने जितना मुनाफा कमाया, उसमें बीएफएसआई का हिस्सा बढ़ कर 38.2 फीसदी हो गया। 2012 के बाद का यह सबसे ऊंचा स्तर है। दस साल पहले कॉरपोरेट मुनाफे में बीएफएसआई सेक्टर का औसत हिस्सा 23.6 प्रतिशत था। स्वाभाविक है कि बीएफएसआई सेक्टर आज सरकार के लिए राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। इस वर्ष की दूसरी तिमाही में कुल राजस्व में इस क्षेत्र का हिस्सा 24.2 प्रतिशत हो गया, जबकि साल भर पहले इसी तिमाही में यह 22.4 फीसदी था।
स्पष्ट है कि गुजरे दशक में मांग- उपभोग- निवेश- उत्पादन और वितरण से जुड़ी कंपनियों का कॉरोपरेट मुनाफे में हिस्सा ठोस रूप से गिरा है। जबकि ऋण, बॉन्ड, स्टॉक, बीमा आदि के कारोबार में पैसा लगाने वाली कंपनियों का मुनाफा उसी रफ्तार से बढ़ा है। Economy की इस दिशा को देखते हुए गैर-बराबरी बढ़ने और बेरोजगारी के गंभीर संकट से संबंधित जो हकीकत हमारे सामने है, उस पर शायद की किसी को हैरत होगी। दुनिया भर के तुजुर्बे के आधार पर कही जा सकती है कि अर्थव्यवस्था की इस दिशा को पलटने का सुविचारित प्रयास नहीं किया गया, तो फिर उपरोक्त समस्याओं का कोई हल नहीं है।