शेयर बाजारों में गिरावट है। उस समय, जब लिस्टेड इक्विटी मार्केट में कुल निवेश के बीच घरेलू सेक्टर का हिस्सा 21.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह बड़े बाजारों के बीच अमेरिका के बाद घरेलू सेक्टर की सबसे ऊंची हिस्सेदारी है।
पिछला हफ्ता भारत के शेयर बाजारों में भारी गिरावट का रहा। वजह पश्चिम एशिया में युद्ध के गंभीर होते हालात और चीन में दिए गए प्रोत्साहन पैकेज को बताया गया है। आकलनों के मुताबिक चीन में ज्यादा मुनाफे की संभावना देखते हुए विदेशी निवेशक वहां लगाने के लिए भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं। चूंकि उपरोक्त दोनों वजहें अभी बनी रहने वाली हैं, इसलिए शेयर कारोबार में जल्द तेजी लौटने की आशा नहीं है। एक समय था, जब शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव से भारत की बहुत छोटी आबादी प्रभावित होती थी। लेकिन हाल में- खासकर करोना काल के बाद- अर्थव्यवस्था का जिस हद तक वित्तीयकरण हुआ है, उससे सूरत बदल गई है। मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक लिस्टेड इक्विटी मार्केट में कुल निवेश के बीच घरेलू सेक्टर का हिस्सा 21.5 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
यह बड़े बाजारों के बीच अमेरिका के बाद घरेलू सेक्टर की सबसे ऊंची हिस्सेदारी है। ओसवाल रिपोर्ट में कहा गया कि घरेलू सेक्टर के प्रत्यक्ष और परोक्ष (सीधे निवेश एवं म्युचुअल फंड्स) निवेश को जोड़ दिया जाए, तो इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह रकम 134 लाख करोड़ रुपये यानी भारत की जीडीपी के 44 फीसदी के बराबर बैठती है। भारतीय परिवारों द्वारा शेयर बाजार में अधिक से अधिक निवेश की प्रवृत्ति कोरोना काल के समय से ही तेजी से बढ़ी है। इस रूप में भारत दुनिया की सर्वाधिक वित्तीयकृत अर्थव्यवस्थाओं में एक बन गया है।
ऐसे में शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव से निवेश की हैसियत रखने वाले आम परिवार अब सीधे प्रभावित होते हैं। उनके धन की मात्रा इस उतार-चढ़ाव के अनुपात में घटती और बढ़ती है। यानी अभी जो बाजार का ट्रेंड है, उसके असर का दायरा खासा व्यापक है। भारतीय अर्थव्यवस्था का अधिक से अधिक वित्तीयकरण मौजूदा सरकार की घोषित नीति रही है। इसके बावजूद कि अब सारी दुनिया में शेयर बाजारों और उत्पादक निवेश एवं वितरण की वास्तविक अर्थव्यवस्था के बीच संबंध कमजोर होता गया है। इस रूप में वित्तीयकरण के अपने खतरे हैं। बहरहाल, अभी दरपेश मुद्दा गिरते बाजार से भारतीय परिवारों की प्रभावित हो रही माली हालत है।