trump tariff war : हले व्यापार एवं शुल्क के बारे में सामान्य समझौते (गैट) और फिर डब्लूटीओ के गठन के लिए हुए समझौते में विकासशील देशों को अधिक शुल्क लगाने की अनुमति दी गई थी। मगर अब वे मनमाने ढंग से टैरिफ लगा रहे हैं।
भारत सरकार के सामने नई चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं। राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए फिर से भारत का नाम उन देशों के साथ लिया, जिनके बारे में उनकी राय है कि इन देशों ने अपनी ऊंची शुल्क दर से अमेरिका की नरम नीति का फायदा उठाया है।
इन देशों पर उन्होंने अगले दो अप्रैल से ‘जैसे को तैसा’ टैक्स लगाने का एलान किया- यानी जो देश जिस दर से अमेरिकी वस्तुओं पर आयात शुल्क लगाता है, अब उसके उत्पादों पर उतना ही शुल्क अमेरिका में लगेगा।
चूंकि ट्रंप किसी वर्तमान अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को नहीं मानते, तो वे यह नहीं बताते कि उन देशों को पुराने अमेरिकी प्रशासनों ने क्यों ऊंची दर से शुल्क लगाने दिया था। (trump tariff war)
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मगर यह फैसला आसान नहीं (trump tariff war)
हैरतअंगेज है कि भारत सरकार या विपक्ष ने भी अपनी जनता को इस बारे में जागरूक करने का प्रयास नहीं किया है। पहले व्यापार एवं शुल्क के बारे में सामान्य समझौते (गैट) और फिर विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के गठन के लिए हुए समझौते में विकासशील देशों को अधिक शुल्क लगाने की अनुमति दी गई थी।
मकसद न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था बनाना था। मगर ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में ही डब्लूटीओ में न्यायाधीशों की नियुक्ति रोक कर इस संगठन को निष्क्रिय कर दिया। अब वे मनमाने ढंग से टैरिफ लगा रहे हैं। (trump tariff war)
इससे भारत में फैली घबराहट का अंदाजा इसी से लगता है कि भारत के दवा निर्यातकों ने सरकार से अमेरिकी दवाओं पर आयात शुल्क कर देने की मांग की है, ताकि ‘जैसे को तैसा’ टैरिफ के असर से वे बच जाएं। मगर यह फैसला आसान नहीं है।
नई अमेरिकी टैरिफ से विभिन्न उत्पाद प्रभावित होंगे, तो क्या सब पर आयात शुल्क शून्य किया जा सकता है? क्या केंद्र देश के व्यापार लाभ को शून्य करने का जोखिम उठाने की स्थिति में है? (trump tariff war)
वैसे चुनौतियां और भी हैं। मसलन, अमेरिकी तकनीकी एवं वित्तीय सेवा कंपनियों ने भारत डिजिटल डेटा संरक्षण अधिनियम के नियमों के तहत डेटा को भारत में ही रखने संबंधी प्रावधान को लागू ना करने की मांग की है। क्या भारत सरकार इसे भी मानेगी?