Wednesday

23-04-2025 Vol 19

समस्या का दायरा बड़ा

BPSC Protest Bihar: उत्तरी राज्यों में सरकारी नौकरियों में भर्ती की तमाम परीक्षाओं पर संदेह का साया घिरा हुआ है। पेपर इतनी बार लीक हुए हैं या इन्हें अदालतों ने रद्द किया है कि परीक्षाओं को लेकर अविश्वास का माहौल बनना लाजिमी है।

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बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की संयुक्त (प्रारंभिक) परीक्षा में शामिल हुए छात्र दोबारा इम्तहान की मांग को लेकर जिस ढंग से जान दांव पर लगाए हुए हैं, उसके कारणों को समझना बेहद जरूरी है।

इसके दो प्रमुख आयाम हैः पहला यह कि उत्तरी राज्यों में सरकारी नौकरियों में भर्ती के होने वाली तमाम परीक्षाओं की संदिग्ध हो चुकी है।

पेपर इतनी बार लीक हुए हैं या गड़बड़ियों के आरोप में इन्हें इतनी बार अदालतों ने रद्द किया है कि परीक्षाओं को लेकर अविश्वास का माहौल बना चुका है।

दूसरा पहलू समाज में अच्छे रोजगार के अवसरों का बेहद सिकुड़ जाना है। इस कारण सरकारी नौकरियां ही स्थिर करियर का एकमात्र आश्वासन रह गई हैं।

पेपर लीक का शक

बिहार एवं उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां निजी कारोबार में सम्मानजनक काम पाने की गुंजाइशें बेहद सीमित हैं, वहां इन नौकरियों को लेकर मारामारी मचने की मिसालें और भी ज्यादा देखने को मिल रही हैं।

पटना की सड़कों पर बिहार के विभिन्न इलाकों से आए सैकड़ों छात्र दो हफ्तों से कड़ी ठंड के बीच बीपीएसी परीक्षा को दोबारा आयोजित करने की मांग इसलिए कर रहे हैं, क्यों उन्हें पेपर लीक का शक है।

छात्रों ने परीक्षा में कई दूसरी तरह की अनियमितताओं के आरोप भी लगाए हैं। इनमें प्रश्न पत्र के स्तरहीन होने और कोचिंग संस्थानों के मॉडल सवालों के मेल खाने के इल्जाम शामिल हैं।

आरोप है कि कई केंद्रों पर सीसीटीवी कैमरा और जैमर काम नहीं कर रहे थे। कुछ केंद्रों पर प्रश्न पत्र देरी से वितरित किए गए।

परीक्षा से कुछ समय पहले भी ये छात्र पटना में इकट्ठा हुए थे। तब उनकी मांग थी कि सारे राज्य में एक ही दिन, एक ही समय, और एक ही प्रकार के प्रश्न पत्र पर इम्तहान लिया जाए।

विरोध को देखते हुए अलग-अलग केंद्रों पर अलग परीक्षा आयोजित करने का इरादा बिहार लोक सेवा आयोग ने तब टाल दिया था। मगर परीक्षा के बाद दूसरे संदेह खड़े हुए।

तो अब छात्रों की चिंताओं पर सहानुभूति से गौर किया जाना चाहिए। उन पर लाठी-डंडा या ठंडे पानी की बौछार चलाना कोई समाधान नहीं है, जैसाकि रविवार को हुआ।

NI Editorial

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